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प्रेम-विवाह और ज्योतिषीय योग

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प्रेम-विवाह और ज्योतिषीय योग

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प्रेम हृदय की एक ऐसी अनुभूति है जो हमें जन्म से ही ईश्वर की ओर से उपहार स्वरूप प्राप्त होती है। आगे चलकर यही प्रेम अपने वृहद स्वरूप में प्रकट होता है। प्रेम किसी के लिए भी प्रकट हो सकता है। वह ईश्वर, माता-पिता, गुरु, मित्र, किसी के लिए भी उत्पन्न हो सकता है। 

लेकिन आज के समाज में सिर्फ विपरीत लिंगी के लिए प्रकट अनुभूतियों को ही प्रेम समझा जाता है। सारा संसार जानता है कि मीरा का प्रेम कृष्ण के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रेम था। यूं तो ढेरों भक्त कवियों ने भी कृष्ण से अपने प्रेम का वर्णन किया है। जैसे- सुरदास इत्यादि।

ज्योतिष में प्रेम- संबंधों और प्रेम-विवाह को लेकर हमेशा से ही दिलचस्पी रही है। ज्योतिषी शास्त्र में कई ऐसी ग्रह दशाओं और योगों का वर्णन है, जिनकी वजह से व्यक्ति प्रेम करता है और स्थिति प्रेम-विवाह तक पहुंच जाती है।

– प्रेम विवाह में कारक ग्रहों के साथ यदि अशुभ व क्रूर ग्रह बैठ जाते हैं तो प्रेम-विवाह में बाधा आ जाती है। यदि प्रेम-विवाह का कुण्डली में योग न हो तो प्रेम-विवाह नहीं होता।

प्रेम-विवाह के ज्योतिषीय योग-

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1. जन्म पत्रिका में मंगल यदि राहू या शनि से युति बना रहा हो तो प्रेम-विवाह की संभावना होती है।

2. जब राहू प्रथम भाव यानी लग्न में हो परंतु सातवें भाव पर बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो व्यक्ति परिवार के विरुद्ध जाकर प्रेम-विवाह की तरफ आकर्षित होता है।

3. जब पंचम भाव में राहू या केतु विराजमान हो तो व्यक्ति प्रेम-प्रसंग को विवाह के स्तर पर ले जाता है।

4. जब राहू या केतु की दृष्टि शुक्र या सप्तमेश पर पड़ रही हो तो प्रेम-विवाह की संभावना प्रबल होती है।

5. पंचम भाव के मालिक के साथ उसी भाव में चंद्रमा या मंगल बैठे हों तो प्रेम-विवाह हो सकता है।

6. सप्तम भाव के स्वामी के साथ मंगल या चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तो भी प्रेम-विवाह का योग बनता है।

7. पंचम व सप्तम भाव के मालिक या सप्तम या नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ विराजमान हों तो प्रेम-विवाह का योग बनता है।

8. जब सातवें भाव का स्वामी सातवें में हो तब भी प्रेम-विवाह हो सकता है।

9. शुक्र या चन्द्रमा लग्न से पंचम या नवम हों तो प्रेम विवाह कराते हैं।

10. लग्न व पंचम के स्वामी या लग्न व नवम के स्वामी या तो एकसाथ बैठे हों या एक-दूसरे को देख रहे हों तो प्रेम-विवाह का योग बनाते हैं यह।

11. सप्तम भाव में यदि शनि या केतु विराजमान हों तो प्रेम-विवाह की संभावना बढ़ती है।

12. जब सातवें भाव के स्वामी यानी सप्तमेश की दृष्टि द्वादश पर हो या सप्तमेश की युति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हो तो प्रेम-विवाह की उम्मीद बढ़ती है।

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