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राष्ट्र-शिक्षिका” माता सावित्री बाई फुले जयंती- 3 जनवरी 

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“राष्ट्र-शिक्षिका” माता सावित्री बाई फुले जयंती- 3 जनवरी 
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भारत में बालिका/महिलाओं की शिक्षा के द्वार खोलने वाली माता सावित्रीबाई फुले की जयंती पर उन्हें नमन तथा भारत की लगभग 70 करोड़ बालिकाओं/महिलाओं को हार्दिक बधाई।  

उन्होने आज से लगभग 170 वर्ष पहले के उस कठिन दौर में अपने पति महात्मा जोतिबा राव फुले की प्रेरणा तथा अपनी प्रिय सहयोगी व मित्र फातिमा शेख के सहयोग से नारी शिक्षा (या कहें “नारी मुक्ति”) का जो मार्ग प्रशस्त किया था वह मात्र भारत ही नहीं बल्कि विश्व इतिहास की एक गौरवशाली गाथा है। 

सावित्रीबाई फुले ने आज से डेढ़ सदी पूर्व (नारी शिक्षा का) जो पौधा रोंपा था उसने आगे चल कर एक बहुत बड़े वृक्ष का रूप धारण कर लिया। उनके संघर्षों का लाभ कालांतर में देश की करोड़ों महिलाओं को मिला, जिनमें दलित, पिछड़े समाज की महिलाओं के साथ साथ सवर्ण समाज की करोड़ों महिलाएं भी शामिल हैं।  हालांकि, वे माता सावित्रीबाई फुले के इस अपूर्व योगदान उनके अपने जीवन में वे खुले दिल से कितना स्वीकार करती हैं ये एक अलग (बहस का) विषय है।      

लेकिन, माता सावित्रीबाई फुले की इस जयंती पर उन्हें याद करने के साथ साथ इस बात को रेखांकित करना भी मैं ज़रूरी समझता हूँ कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ के जिस “फर्जी नारे” के दौर में हम जी रहे हैं उस दौर में सावित्रीबाई फुले के अनथक संघर्षों और ऐतिहासिक उपलब्धियों पर काले बादल मंडला रहे हैं। पिछले 10-12 साल के इतिहास को देखा व समझा जाए तो (विभिन्न) सरकारों की बेईमान और साजिशपूर्ण नीतियों के कारण महिला शिक्षा का स्तर बहुत अधिक एवं बहुत ज्यादा तेजी से नीचे गिरा है। देश भर में कई लाख स्कूल बंद करा दिये गए हैं या सरकारी (कु)नीतियों के कारण स्वयं ही बंद हो गए हैं। जो स्कूल चल भी रहे हैं विशेषकर उत्तर भारत में, उनमें पढ़ाई-लिखाई का स्तर इतना गिरा दिया गया है जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। करोड़ों बालिकाओं (विशेषकर दलित, पिछड़े वर्गों की गरीब/अभावग्रस्त बालिकाओं) का भविष्य घोर अंधकार की तरफ जाने को है। 

क्या हम इस सब के प्रति जागरूक हैं…?? 

इसलिए मेरा ऐसा मानना है कि ऐसे तमाम ऐतिहासिक दिनों (विशेषकर बहुजन महापुरुषों की जयंती तथा स्मृति दिवस के अवसर पर) पर हम सब मात्र ‘कोटि-कोटि नमन’ की रस्म अदायगी से ऊपर उठ कर इस बारे में भी विचार मंथन करने की आदत भी डालें ताकि हमारे जिन महापुरुषों के संघर्षों की बदौलत हमें जो कुछ हासिल हुआ है क्या आज वह तरक्की/चढ़ाव (Progress/Growth) की तरफ जा रहा है अथवा घटत/उतार (Regress/ Reduction) की तरफ? इस बारे में सतत, विशेषकर ऐसे अवसरों पर, कठोर और ईमानदार समीक्षा होते रहना ज़रूरी है अन्यथा ऐसे महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक दिनों के खोखले व निरर्थक “उत्सवीकरण” (या किसी “धार्मिक अनुष्ठान” की भांति रस्म अदायगी) हमें कहीं दोबारा उन्हीं अँधेरों में न पहुंचा दें, जिन अँधेरों से उन्होने हमें बड़ी मेहनत और कठिन संघर्षों से निकाला था।  

 
जो भी हमने पाया है उसको आगे बढ़ाने ही नहीं, बल्कि कायम रखने के वास्ते भी हमें सदैव चौकन्ना व प्रयासरत रहने की ज़रूरत है।  विशेषकर इस दौर में, जिसमें हम आज जी रहे हैं।  

माता सावित्रीबाई फुले तथा माता फातिमा शेख को नारी-शिक्षा की दिशा में किए उनके इस महान योगदान को याद करते हुये उन्हें पुनः भावपूर्ण नमन।  

                           * 
प्रमोद कुरील (पूर्व सांसद-राज्य सभा) 
राष्ट्रीय अध्यक्ष- बहुजन नैशनल पार्टी (BNP) 
03-01-2023   

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