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नारद जयंती आज

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नारद मुनि जी को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र कहा जाता है। इस वर्ष नारद जयंती 07 मई 2023 को मनाई जाएगी। इस नारद जयंती के उपलक्ष्य पर देश भर में कई तरह के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

नारद मुनि को सदैव भ्रमणशील होने का वरदान मिल हुआ था। इसलिए वह कभी भी एक स्थान पर अधिक समय नहीं रहते। ज्येष्ठ माह के कृष्‍ण पक्ष की द्व‍ितीया को नारद जयंती के रूप में मनाई जाती है। हिन्‍दू शास्‍त्रों के अनुसार नारद को ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक माना गया है। नारद को देवताओं का ऋष‍ि माना जाता है। इसी वजह से उन्‍हें देवर्षि भी कहा जाता है। मान्‍यता है कि नारद तीनों लोकों में विचरण करते रहते हैं।

देवर्षि नारद व लोक कल्याण भावना

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नारद मुनि भगवान श्री विष्णु के भक्त और सदैव नारायण नारायण नाम का स्मरण करते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते रहते हैं। देवर्षि नारद भक्ति और शक्ति का अदभुत समन्वय रहे हैं। यह सदैव लोक कल्याण के प्रचार और प्रसार को अविरल गति से प्रवाहित करने वाले एक महत्वपूर्ण ऋषि भी हैं।

शास्त्रों के अनुरुप सृष्टि में एक लोक से दूसरे लोक में विचरण करते हुए नारद मुनि सभी के कष्टों को प्रभु के समक्ष रखते हैं। सभी जन की सहायता करते हैं। देवर्षि नारद देव और दैत्यों सभी में पूजनीय स्थान प्राप्त करते हैं। सभी वर्ग इनका उचित सम्मान करते हैं। क्योंकि ये किसी एक पक्ष की बात नहीं करते हैं, अपितु सभी वर्गों को साथ में लेकर चलने की इनकी अवधारणा ही इन्हें सभी का पूजनीय भी बनाती है।

वेद एवं पुराण में ऋषि नारद जी के संदर्भ में अनेकों कथाएं प्राप्त होती है। हर स्थान में इनका होना उल्लेखनिय भूमिका दर्शाता है। शिवपुराण हो या विष्णु पुराण, भागवद में श्री विष्णु स्वयं को नारद कहते हैं। रामायण के संदर्भ में भी इन्हीं की भूमिका सदैव प्रमुख रही। देवर्षि नारद धर्म को एक बहुत ही श्रेष्ठ प्रचार रुप में जाना गया है।

नारद मुनि का वीणा गान और ग्रंथों के निर्माता

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नारद मुनि के पास उनका प्रमुख संगीत वाद्य वीणा है। इस वीणा द्वारा वह सभी जनों के दुखों को दूर करते हैं। इस वीणा गान में वह सदैव नारायण का पाठ करते नजर आते हैं। अपनी वीणा के मधुर स्वर से वह सभी के कष्टों को दूर करने में वह सदैव ही अग्रणी रहे।

नारद जी को ब्रह्मा से संगीत की शिक्षा प्राप्त हुई थी। नारद अनेक कलाओं और विद्याओं में निपुण रहे। नारद मुनि को त्रिकालदर्शी भी बताया जाता है। ब्रह्मऋषि नारद जी को शास्त्रों का रचियता, आचार्य, भक्ति से परिपूर्ण, वेदों का जानकार माना गया। संगीत शास्त्र में भी इनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है।

नारद मुनि द्वारा किये गए कार्य

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नारद मुनि के अनेकों कार्यों का वर्णन मिलता है जो सृष्टि के संचालन में महत्व रखता है। श्री लक्ष्मी का विवाह विष्णु के साथ होना, भगवान शिव का देवी पार्वती से विवाह संपन्न कराना, उर्वशी और पुरुरवा का संबंध स्थापित करना। महादेव द्वारा जलंधर का विनाश करवाना। वाल्मीकि को रामायण की रचना निर्माण की प्रेरणा देना। व्यासजी से भागवत की रचना करवाना। इत्यादि अनेकों कार्यों को उन्हीं के द्वारा संपन्न होता है।

हरिवंश पुराण अनुसार जी दक्ष प्रजापति के हजारों पुत्रों बार-बार संसार से मुक्ति एवं निवृत्ति देने में नारद जी की अहम भूमिका रही। उन्हीं के वचनों को सुनकर दक्ष के पुत्रों ने सृष्टि को त्याग दिया। मैत्रायी संहिता में नारद को आचार्य के रूप में स्थापित किया गया है।

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