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भाषा की रक्षा दुर्ग जैसी साकार धरोहर की तरह की जानी चाहिए : डॉ.सीपी देवल

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‘’ लेखक की बात ’’ कार्यक्रम का आयोजन

भाषा की रक्षा दुर्ग जैसी साकार धरोहर की तरह की जानी चाहिए : डॉ.सीपी देवल

अजमेर 03 अप्रेल। राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम के संस्थापक अनिल सक्सेना ने रविवार को अजयमेरु प्रेस क्लब में अतिथि राजस्थानी भाषा के प्रतिष्ठित लेखक पद्मश्री डॉ. सी. डी. देवल से राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति पर संवाद किया ।

सक्सेना ने बताया कि फोरम पत्रकारों, साहित्यकारों तथा कलाकारों के लिए वैचारिक क्रांति का सशक्त मंच है । फोरम द्वारा राज्य की सभी विधानसभा क्षेत्रों में पत्रकारिता और साहित्य संवर्धन की दृष्टि से कार्यक्रम किए जा रहे हैं । पद्मश्री डॉ. देवल से इसी शृंखला में ‘’लेखक की बात’’ कार्यक्रम में संवाद किया गया।

पद्मश्री डॉ.देवल ने कहा कि मीरा और महाराणा प्रताप के कारण राजस्थान की देश और दुनिया में पहचान है। उनका गौरवशाली इतिहास भारत को एक अलग मुकाम पर खड़ा करता है। साहित्यकारों ने उनके स्वाभिमान और यहाँ तक कि अश्व चेतक को केंद्र में रखकर विपुल साहित्य रचा है। इस प्रकार की रचना विदेश में किसी महापुरुष पर की गई रचनाओं से भी बहुत अधिक है।

उन्होंने कहा कि मानवता का सबसे बड़ा आविष्कार भाषा है। मुझे अपनी भाषा का जुगनू होने पर गर्व है। राजस्थानी भाषा के साहित्य का सृजन साधारण और संयुक्त वाक्य विन्यास में कवि अपनी शैली तथा लय के साथ प्रस्तुत करता है। इसी प्रकार अनुवाद विधा में मूल लेखक अनुवादित भाषा में जिस रूप में लिख सकता था उसी रूप में अनुवाद करने का प्रयास करना चाहिए। काव्य में बिंब पकड़ने की शैली के अनुसार अनुवाद होना चाहिए।

डॉ देवल ने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद साहित्य में जबरदस्त बदलाव आया। कई सामाजिक मूल्यों में भी परिवर्तन आया। उसमें से नया जीवन और सौंदर्य तलाश करने के लिए साहित्य का नए सिरे से सृजन किया गया।

उन्होंने कहा कि अपनी भाषा को समृद्ध करने के 4 तरीके सृजन, अन्य भाषाओं के अनुवाद, अपनी भाषा का अन्य भाषाओं में अनुवाद तथा भाषाई कार्यकर्ता बनना है। भारत में इतिहास को पद्य के रूप में लिखे जाने की परंपरा रही है। कर्नाटक में समाज की जड़ और जकड़न को दूर करने के लिए मठों में साहित्य का सृजन हुआ।उन्होंने स्त्री विमर्श और दलित विमर्श के संबंध में भी अपने विचार व्यक्त किए एवं कहाकि मनुष्यता को बचाए रखना साहित्यकार का पहला धर्म है और व्यवस्था सदैव मनुष्य विरोधी आचरण करती है।

उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा एक हजार साल पुरानी भाषा है। भाषा का निर्माण लोक द्वारा होता है। इसे बनाने में सत्ता की भागीदारी नहीं होती। भाषा निराकार धरोहर है। इसकी रक्षा दुर्ग जैसी साकार धरोहर की तरह ही की जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि मीरांबाई के द्वारा लिखे गए लोक साहित्य को आत्म संघर्ष की तरह जानने की आवश्यकता है। कवि और साहित्यकार होना कठिन है। सृष्टि की पहली कविता आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई थी। कविता हमेशा लोक के पक्ष में खड़ी होती है और प्रतिरोध उसका धर्म है।

राजस्थानी भाषा की मान्यता के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा संपूर्ण राजस्थान का गौरव है। सभी व्यक्तियों को एक राय होकर दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ राजस्थानी को मान्यता दिलाने का प्रयास करना चाहिए। इस संबंध में राजनीतिक जागरूकता के साथ-साथ सांस्कृतिक जागरूकता भी आवश्यक है। राजस्थानी भाषा के विलुप्त होते शब्दों पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे समाज का कोई सामाजिक अनुष्ठान राजस्थानी गीतों के बिना संभव नहीं है।

उन्होंने युवा पीढ़ी को कविता से जोड़ने के संबंध में कहा कि काव्य का रास्ता दुर्गम है। नई पीढ़ी को प्रलोभनों में नहीं पड़कर रिजक री मर्यादा की भांति भाषा को बचाना चाहिए। पत्रकारिता और साहित्य को एक दूसरे का पूरक बताते हुए उन्होने कहा कि पत्रकारिता को मिशन मानकर कार्य करने के कारण ही इसे गणतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है।

मुख्यमंत्री के ओएसडी वरिष्ठ व्यंग्यकार फारूक अफरीदी ने कहा कि डॉ. सी.डी. देवल ने विपुल साहित्य सृजन और अनुवाद के माध्यम से राजस्थानी को देश भर में पहचान दिलाई। यह गर्व का विषय है। इन्होंने विविध भाषाओं के बीच सेतु बनाने का अतुलनीय कार्य किया है। इनसे आने वाली पीढ़ियां इससे प्रेरणा लेगी।

संवाद के दौरान पूर्व राज्यसभा सांसद श्री ओंकार सिंह लखावत, वरिष्ठ साहित्यकार विनोद भारद्वाज, अजयमेरु प्रेस क्लब के अध्यक्ष रमेश अग्रवाल एवं उपाध्यक्ष श्री राजेंद्र गुंजल, पूर्व आईएएस श्री भंवरसिंह चारण, पूर्व आईएएस विक्रम सिंह सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार और पत्रकार उपस्थित थे।

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