राजस्थान में मनरेगा मजदूरी कम मिलने से श्रमिकों का हो रहा मोहभंग, दिहाड़ी के लिए काटते है चक्कर
राजस्थान में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्यवन में कई तरह की बाधाएं एवं नियम बनाने के साथ श्रमिकों की मजदूरी अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी से कम होने पर श्रमिकों का मोह भंग होता जा रहा है। मनरेगा में श्रमिकों के सामने सबसे बड़ी समस्या काम पूरा करने वाले श्रमिकों की दिहाडी कटकर आने से समस्या आ रही है।
मनरेगा योजना में राजस्थान में दैनिक मजदूरी प्रति श्रमिक 266 रुपए है जबकि मेट की मजदूरी अभी भी 255 रुपए है। जबकि अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी 285 रुपए है। जबकि बाजार में अकुशल श्रमिकों को 500 से 600 रुपए के बीच दिहाड़ी मिल रही है। गांवों में फसल कटाई व सब्जी तुड़ाई की दर 300 से 350 रुपए प्रतिदिन है। जिसमें किसी प्रकार की कटौती नहीं होती है। मनरेगा श्रमिकों की उपस्थिति ऑनलाइन होने के साथ ही भुगतान कई बार कई माह गुजरने के बाद आता है। जिसके चलते श्रमिक कार्यकारी एजेंसी ग्राम पंचायत कार्यालय से लेकर कार्यक्रम अधिकारी कार्यालय पंचायत समिति तक चक्कर काटते रहते है।
फसल कटाई के बाद रुख करते थे:
रबी फसल कटाई के बाद गांवों में श्रमिक मनरेगा की ओर रुख करते थे। अप्रेल, मई व जून के माह में खेतों में काम नहीं रहने से गांव-गांव में मनरेगा कार्य चलाने की मांग की जाती थी तथा कार्य चलते थे। पंचायत समिति जमवारामगढ़ में 35 ग्राम पंचायतें है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में 1-1 काम चल रहा है। कुल 35 कार्यों पर मात्र 1285 श्रमिक काम कर रहे है। जबकि पंचायत समिति जमवारामगढ़ में सक्रिय श्रमिक या एक्टिव लेबर की संख्या 12024 है। यानी एक्टिव लेबर में से मात्र 10.68 प्रतिशत श्रमिक ही मनरेगा के पीक सीजन में काम कर रहे है। जो यह दर्शाता है कि ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार की गारंटी देने वाली मनरेगा स्कीम से श्रमिकों का मोहभंग होता जा रहा है।
मनरेगा श्रमिकों की बढ़े मजदूरी…:
मनरेगा श्रमिकों की मजदूरी पूरे देश में अलग-अलग है। कई राज्य केंद्र सरकार के साथ अपनी हिस्सा राशि बढ़ाकर ज्यादा मजदूरी दे रहे है। हरियाणा में सर्वाधिक मजदूरी 374 रुपए जो राजस्थान से 108 रुपए कम है। जबकि बाजार दर 500 रुपए दिहाड़ी मजदूरी है। ऐसे में मनरेगा श्रमिकों की दैनिक मजदूरी में बढ़ोतरी बाजार दर के अनुसार होनी चाहिए। मनरेगा योजना में पारदर्शिता के नाम पर बैरियर खडे़ करने की बजाय योजना को सरल एवं सुगम बनाकर काम की गारंटी व काम के पूरे दाम देने चाहिए।
नए कार्य हो शामिल…:
मनरेगा योजना में अधिकांश तालाब, जोहड़े, बांध, तलाइयां व जल संरक्षण ढांचों की खुदाई तक ही सीमित है या फिर ग्रेवल सड़क बनाने तक सीमित है। गांवों में मिट्टी खुदाई के लिए जलाशय बचे ही नहीं है। ऐसे में ग्रामीण विकास के कई नए कार्य मनरेगा में शामिल किए जाने चाहिए।
फार्म पॉण्ड योजना हो कारगर…:
कृषि विभाग ने फार्मपॉण्ड योजना चला रखी है। एक फार्म पॉण्ड पौंड की खुदाई में किसान की लागत एक लाख तक आ रही है। लघु, सीमान्त व कम आय वाले किसान परिवार फार्म पौंड योजना में रुचि नहीं ले रहे है। फार्म पॉण्ड की खुदाई मनरेगा में अनुमत हो तो सूखे प्रदेश में कृषि क्षेत्र में युगान्तकारी परिवर्तन आ सकता है।
पंचायत समिति का नाम : जमवारामगढ़:
कुल ग्राम पंचायते : 35
कुल स्वीकृत कार्य : 35
कुल कार्यरत श्रमिक : 1285
कुल एक्टिव लेबर : 12024
एक्टिव लेबर का प्रतिशत : 10.68 प्रतिशत
इनका कहना है…:
मनरेगा में श्रमिकों की मजदूरी बढ़नी चाहिए। इसमें अधिकांश कार्य महिलाएं करती है। मनरेगा श्रमिकों की मजदूरी महंगाई दर के अनुसार नहीं बढ़ी है।
कुसुम लता जैन, सचिव, ग्राम भारती समिति
मनरेगा योजना को कृषि विभाग की फार्म पॉण्ड योजना के साथ लागू करना चाहिए। इससे सूखे खेतों पर बिना खर्च किए किसान फार्म पॉण्ड बना सकेंगे। मिट्टी खुदाई के कार्य बचे नहीं है।
रूक्मणी देवी मीना, सरपंच, धूलारावजी
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