कितना सम्भव है तीसरा विश्वयुद्ध..
क्या होंगे भारत के दांव?
पहला विश्वयुद्ध इसलिए हुआ था, क्योकि देशों की सीमाओं का मान नही था। यूरोप के रजवाड़ो ने एक दूसरे के इलाके चुराने की कोशिश की।
दूसरा भी इसीलिए हुआ, क्योकि जर्मनी ने दूसरे देशों पर कब्जे का लोभ किया। लेकिन इसके बाद 80 साल, शान्ति से गुजरे है।
वजह- इलाकाई सम्प्रभुता के सम्मान की सभ्यता पनपी।
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अब भूटान हो, या जापान, शक्तिवान हो या धनवान.. कोई किसी के इलाके न छीनता था। अधिक से अधिक पिठ्ठू सरकारें बनवाने की कोशिश होती, जो आपके हित साधे।
अमेरिका इस व्यवस्था मे ब्रोकर और पहरेदार बनता।
लेकिन ईराक, अफगानिस्तान, सीरिया, यूक्रेन में सीधे सेनाऐं उतरीं। पूतिन ने यूक्रेन मे कब्जा किया। चीन को ताइवान चाहिए, फिर अरुणाचल और अक्साई चिन।
खुद अमेरिका दरोगा से डाकू बन चुका है।ट्रंप कनाडा चाहिए, गल्फ ऑफ मैक्सिको, ग्रीनलैंड और गाजा चाहिए। हम भी अखंड भारत बनाकर कर 8-10 देशो पर कब्जा चाहते ही है।
युद्धप्रिय दक्षिणपन्थ को यूरोप मे जनसमर्थन मिल रहा है। एर्डाेगन अलग ताल ठोक रहा है, नेतन्याहू का अपना राग है। अभी इन सबके बावजूद कोई विश्वयुद्ध हो जाये, लगता नही…
पर अगर हो जाये,
तो हम कहां खड़े है??
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ध्यान से देखें, तो आज दुनिया की नई खेमेबंदी हो रही है। देर सवेर इस रीएलाइनमेंट के पूरे होने पर दुनिया दो खेमो में होगी।
- पहला ओल्ड ऑर्डर- अमेरिका, और जो भी उसके साथ हों। इन्हें नए जमाने के मित्र राष्ट्र कह लें।
-दूसरा चैलेंजर्स- याने चीन की केन्द्रीय भूमिका मे उत्तर कोरिया और चीन से चिपके मध्य एशिया के एशियन देश।
याने मंगोलिया, कजाक, तुर्कमेनिस्तान, ताजकिस्तान, पाकिस्तान और अफगान। साथ ही मध्य एशिया और अफ्रीका के कुछ महत्वहीन (लेकिन स्ट्रेटेजिकली महत्वपूर्ण) देश। इन्हे नए जमाने के एक्सिस पावर्स कह लें।
चीन से नाराज देश – जापान, भारत, आष्ट्रेलिया, काफी हद तक यूरोप मित्रराष्ट्र के हिस्से होंगे।
लेकिन चीन पर अत्यधिक निर्भरता के कारण रूस के एक्सिस पावर्स के साथ होने के लक्षण है।
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मुख्य चैलेजर, चीन है।
तो युद्ध उसे मिटाने का होगा। फिर तो लड़ाई भी चीन के गिर्द होगी। याने अगला विश्वयुद्ध यूरोप मे नही, एशिया में होगा।
एलाई पावर्स सभी चीन से दूर हैं।
वे समुद्र और हवा से हमले करेंगे। दक्षिण चीन सागर, सी आफ जापान बैटलग्राउंड होगा। अमेरिकी, जापानी, आस्ट्रेलियन नेवल फ्लीट वहां पर हमले करेंगे। सिंगापुर, फिलीपींस, मलयेशिया, ताइवान अपने पोर्ट देकर कॉन्ट्रिब्यूट करेंगे।
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लेकिन नेवी हो या एयरफोर्स,
सैटलाइट हो, ड्रोन या इंटरनेट वारफेयर।
इनकी बेसिक इनेबिलीटी ये है कि, दुश्मन को केवल लाचार करते हैं, घाव दे सकते हैं, पर डिफीट नही कर सकते। क्येाकि युद्ध जीतने के लिए, जमीन जीतना होता है।
और जमीन कब्जाने को इंसान चाहिए।
जमीन पर कौन लड़ेगा??
शतरंज मे चीनी तोपों का चारा कौन होंगे??
अब चीनी सीमा पर 14 देश है- रूस, उत्तर कोरिया, मंगोलिया, कजाक- ताजिक- अफगान, पाक, भारत, नेपाल, भूटान, म्यांमार, लाओस, वियतनाम..
अधिकांश एक्सिस पावर्स के हिस्से ..
और जो विरोधी हैं, बहुत छोटे हैं।
सिर्फ एक है, जिसकी 24 लाख की फौज है, बड़ा भूभाग, चीन से पुरानी खुन्नस है, और मूर्ख लीडरशिप भी। जहां एक बेवकूफ बकरा हलाल होने को तैयार खड़ा है।
उसके पीछे 150 करोड़ तारासिंह, बीजिंग का हैण्डपंप उखाडने को बेकरार हैं।
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मगर हम जोश कूद पडेंगे, ऐसा जरूरी नहीं।
लेकिन डिफेण्ड तो करेगें न।
चीन की सोचिए। चीन की सुप्रीमेसी, साउथ चाइना सी में कुछ नेवल शिप्स को डुबाने, विमान गिराने या वियतनाम/ताइवान जीतने से प्रूव नही होगी। उसे दुश्मन ग्रुप के, बड़े देश को हराना होगा।
उसके पश्चिम में मंगोलिया, मध्यएशियन देश, उत्तर में रूस है। सारे ही उसके खेमे के। पूर्व में समुद्र है।
ऐसे मे चीन का भूगोल, कहता है कि दादागिरी प्रमाणित करने के लिए उसे दक्षिण में ही बढना होगा।
हिमालय पार करना होगा।
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हिमालय के इस पार, भारत चीन के बची के सारे बफर स्टेट, याने नेपाल, भूटान, अब चीन के पाले में हैं।
पाकिस्तान का तो कहना ही क्या। दक्षिण में मालदीव और श्रीलंका भी उसकी मुट्ठी में। चारो ओर चीनी ऐजेंटो की माला से घिरे ..
इन सबको चीनी पाले में हमने ही धक्का मार मारकर भेजा है। मालदीव को गाली, लंका का मजाक, पाकिस्तान की MKB, नेपाल का आर्थिक ब्लॉकेड..
और बंगलादेशी घुसपैठियों को मार भगाने का प्रण।
ये आपके पडोसी देश है।
और सीमाओ के राज्य है- पंजाब, कश्मीर, मणिपुर। वे पहले ही खालिस्तानी, पाकिस्तानी, चाइनीज और गद्दार करार दिये जा चुके है।
वी आर परफेक्टली रेडी टू बी रेप्ड।
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असली लड़ाई, पूर्वाेत्तर में होगी।
इतिहास में केवल एक हमला, पूर्वाेत्तर से हुआ था। सुभाष को आगे रखकर किया गया जापानी हमला। सुभाष का यह रास्ता चीन 1962 में अपना चुका है।
क्येाकि हिमालय से उतरना, चीन के लिए सुगम है, और वाया म्यांमार, भारत मे घुसना बेहद आसान। इसके मुकाबले, जबकि भारत की ओर से कॉउंटर एप्रोच की कठिनाई भरा है।
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ऐसे हालात मे मेरा मानना है कि युद्ध का पहला दौर चीन का होगा। आप जितना भी पृथ्वीराज चौहान के वीरता के किस्से गाते रहें, चीन आर्थिक, सामरिक, तकनीकी और रणनीतिक स्तर पर हमारा पांच गुना है।
आप व्व्हाट्सप पढते है, तो शायद सहमत न हों, लेकिन एस. जयशंकर भी मुझसे सहमत है। तो पहले राउंड में हम सभी नार्थ ईस्ट के राज्य खोयेंगे।
असम/वेस्ट बंगाल का भी एक बड़ा हिस्सा हाथ से निकलेगा। इसके बाद चीन को वह समस्या होगी, जो रूस मे भीतर तक जीतने के बाद आई। जो समस्या रूस को यूक्रेन मे आई। याने घर से मोर्चे तक, सप्लाई लाइंस का बेहद लंबा हो जाना।
लंबी सप्लाई लाइन, वल्नरेबल होती है।
सो उसकी बढत रूकेगी।
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इसके आगे, अंतिम नतीजा क्या होगा,
निर्भर करेगा कि युध्द कितना लम्बा खिंचता है।
और हमारे गुट के देश, याने चीन की दूसरी सीमाओं पर जापान, अमेरिका कितने नए मोर्चे खोलेंगे।
चीनी सेना को कोई नार्मण्डी दे पाते हैं या नही। उसके संसाधनो पर कितना दबाव पड़ेगा। उसके समर्थन मे क्या रूस क्या ईस्टर्न यूरोप में हमले करेगा।
कुछ देश क्या पाले बदलेंगे??
यह सब बड़ी फ्लूइड सिचुएशन होगी,
कुछ भी हो सकता है।
लेकिन अगर चीन एंड कम्पनी जीती, तो हम 200 साल पीछे चले जायेंगे। यहां चीन की कोई पिट्ठू सरकार होगी।
हां, अगर अमेरिका जीता, तो हम वहीं होंगे जो दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन, चीन और फ्रांस की औकात रही।
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लेकिन ऐसे हो या वैसे, पॉजिटिव थिंकिंग यह कि हमारी जनसँख्या समस्या अच्छी तरह हल हो जाएगी। इसका जश्न मनाने के लिए आपके बचने की गांरन्टी 50% से ज्यादा है।
कहने का मतलब 20-30% ही मरेंगे।
जिन्हे ज्योतिष मे रूचि है, कुंडली वगैरह दिखवा ले। भारत के लिए अगला एक दशक मरणांतक कष्ट वाला कठिन समय प्रिडिक्ट किया गया है। उधर यू ट्यूब पर नास्त्रेदमस के हिंदी वाले वीडियो भारत को दुनिया का भावी सिरमौर बताते हैं,
और चाइनीज वीडियो चीन को।
आपकी मर्जी, आप जो चाहे देखें।
डेटा सस्ता भी है।
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पोस्ट आपको डराने के लिए नही।
आपको यह सोचने को मजबूर करने के लिए है कि क्या तेजी से बदलते हुए इस बदलते वैश्विक हम प्रिपेयर्ड हैं? क्या हमारी आंतरिक और बाह्य नीतियां, हमे भरोसेमंद मित्र दे रही हैं,
या कडवे दुश्मन खड़े कर रही हैं।
प्रिपेयर्डनेस सबसे पहले आर्थिक है। मिलट्री ताकत, आर्थिक क्षमता पर निर्भर है। जितना उक्रेन ने युद्ध के लिए कर्ज लिया, उतना हम सामान्य दिनो मे पहले ही लेकर बैठे है। मैन्युफ्रेक्चरिंग घ्वस्त है। आपके घर का 40 प्रतिशत सामान चाइनीज है।
हमारी लॉजिस्टिक, प्लानिंग और एडमिनिस्ट्रेटिव ताकत पैरालाइज है। जब रेलट्रेक पुलों सड़कों पर बमबारी नही हो रही, तो आप ऑक्सीजन नही पहुचा पाते, समय पर पसिंजर और एक्सप्रेस नहीं पहुंचा पाते।
स्टेशन पर लोग भगदड़ मे मर जाते है। सेनाऐ, साजोसामान सीमाओं पर कैसे पहुंचायेंगे। बिजलीघर और डैम नही उडाए गए, पोर्ट और एयरपोर्ट घ्वस्त नही है, तो जाम पर जाम लगे होते है, बत्ती गुल है, घरो मे पानी नही आता।
इन हालात के सुधरने के लक्षण, या सुधारने की नीयत नही दिखती।
व्यवस्थाओ का निजीकरण कर ऐसे हाथों में दिया जा रहा है, जो लन्दन में मकान खरीद चुके हैं।
युद्ध के समय सबसे पहले भागेंगे।
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मिलट्री को वेतन भत्ते घटाने की नौबत है। एक लाख सैनिक घटाने की योजना पेश हो चुकी है। गिनती के रफेल, चिनूक, SU-400 जैसे शो पीसेज के अलावे बाकी जरूरी चीजों की मांग अनसुनी की जा रही है।
कड़वे चुनावी प्रचार, और आपसी नफरत के प्रचार के 24X7 अभियान ने समाज को बुरी तरह विभाजित किया है। देश की आबादी का पांचवां हिस्सा, 24 करोड़ अल्पसंख्यक भयभीत हैं।
लेकिन कश्मीर और उत्तर पूर्व के भावी मोर्चों, रहने वाले वही लोकल लोग है। हमारे ट्रुप्स को वहां जनसमर्थन कितना होगा??
यदि मिलेगा तो याद रखिए, यह उनकी अच्छाई होगी, अहसान होगा। वर्ना तो सोशल मिडिया और नेताओं के मंच से उन्हे पहले ही चीख चीखकर गद्दार-घुसपैठिया- हमलावर तो पहले ही साबित किया जा चुका है।
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जेलिंस्की-ट्रम्प की बातचीत देखी। सड़क छाप लोग सत्ता के प्रतिष्ठानों मे बैठकर ठगों और लुटेरों की भाषा मे बात करते दिखे। यह हालात 1935 के बाद थे।
खिडकी के बाहर देखता हूं तो एक तूफान हमारे घर की ओर बढता दिख्ता है। घर के भीतर देखता हूं, तो लोग बिगड़ैल बच्चे की तरह, अपने खिलौने तोड़ रहे हैं, पटका-पटकी, झोंटा झोंटी, और गालीबाजी मे मस्त है।
और जिसे यह व्यवस्था ठीक करनी चाहिए, हमारा वह लीडर अलमारी पर चढ़कर हमे जोश दिला रहा है, थाल बजा रहा है।
दुनिया के घटनाक्रमों मे उसका कोई रोल नही, कोई पूछ परख नही। लेकिन वह हर दूसरे दिन विश्व नेताओं के बीच मे दांत निपोरकर, तस्वीरें खिचवा रहा है। बिहार मे चुनाव की तैयारी कर रहा है।
इस बीच, कितना सम्भव है कोई युद्ध
क्या होंगे भारत के दांव?
क्या कोई सोच भी रहा है??
Reborn Manish
