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सार्वभौम संप्रभु भ्रष्टाचार महान, रीडर की निडरता ने पेश की प्रशासनिक तानाशाही की अविस्मरणीय मिसाल ???

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सार्वभौम संप्रभु भ्रष्टाचार महान, रीडर की निडरता ने पेश की प्रशासनिक तानाशाही की अविस्मरणीय सौगात ???
अजमेर,(विशेष आलेख) जहां चार जिलों के मालिक बैठते हैं, जहां 4 जिलों का शासन और प्रशासन एक आवाज पर कांप उठता है, जहां से संभाग की हर प्रशासनिक व्यवस्था पर नजर रखी जाती है, चाक-चौबंद किया जाता है ,मजबूत किया जाता है, और यह भी देखा जाता है कि शासन व्यवस्था के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति तक कानून और न्याय का हाथ पहुंचे और उसके साथ कोई अन्याय ना हो ऐसे ही स्थान पर प्रशासनिक भ्रष्ट ताका कैसा निर्मम उदाहरण देखने को मिला है कि संभागीय आयुक्त कार्यालय का कर्मचारी कितना बेखौफ था, किस कदर निडर था कि उसे किसी भी शासन प्रशासन के अधिकारी का कोई खौफ नहीं था और बड़े आराम से ₹95000 की रिश्वत ली अपने ही कार्यालय में जहां सर्वोच्च अधिकारी भी विराजमान थे।
यह अविरल तम उदाहरण है जोकि अजमेर के साथ-साथ संभाग के अलावा पूरे राज्य में देखने को मिला है, आप उस कर्मचारी की निडरता से अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारी प्रशासनिक व्यवस्था किस कदर लचर, लाचार और बेरहम हो चुकी है। एक तरफ जहां राज्य के माननीय मुख्यमंत्री अपनी प्रशासनिक व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए नहीं थकते हैं । आवाम की खुशहाली और बेहतरी के लिए अपने जादूगरी पिटारे में से एक से बढ़कर एक जमुरे निकाल निकाल कर सूबे की आवाम को तालियां बजाने पर मजबूर कर रहे हैं वहीं उनका प्रशासनिक अमला किस कदर नृशश और निरंकुश होकर, बेलगाम होकर, अपने कारनामों को अंजाम दे रहा है शायद जिल्ले इलाही इससे वाकिफ नहीं है। इस प्रकरण की गंभीरता कितने धुरंधर तीस मार खां लेखकों, ब्लॉगरों, पत्रकारों, संपादकों की आत्मा को झकझोरे यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा जो की शायद इस वक्त कहना लाजमी नहीं होगा, लेकिन महसूस किया जाना चाहिए कि आखिर हमारी प्रशासनिक व्यवस्था किस कदर भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा को पार कर चुकी है।

प्रशासनिक व्यवस्था किस कदर भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा को पार कर चुकी है।
संभागीय आयुक्त कार्यालय के एक कर्मचारी का पूरी तरह से बेखौफ और निडर होकर रिश्वत की राशि अपने अधिकारियों की कार्यालय में मौजूदगी के बावजूद अपनी ही सीट पर वसूल करना शायद राजस्थान में एक अनन्य तम उदाहरण हो सकता है यह दर्शाने के लिए की शासन के कारिंदे किस कदर बेखौफ हैं आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जहां 4 जिलों का मालिक बैठता है उसी संभाग मुख्यालय पर यदि भ्रष्टाचार की यह पराकाष्ठा है तो निचले लेवल पर, ग्रामीण स्तर पर, पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा क्या होगी इस बारे में सोच कर ही रूह कांप उठती है।
सूबे के मुखिया को अपने कर्मचारियों की इस शानदार कार्यशैली पर लगाम लगानी ही होगी वरना रिपीट कांग्रेस सरकार के सपने धरे के धरे रह जाएंगे क्योंकि सरकारों की अखबारों में होने वाली घोषणाओं से आवाम को ज्यादा वास्ता नहीं रहता है उसे जहां और जिस से वास्ता पड़ता है उस जगह न्याय और लोक कल्याणकारी परोपकार की भावना से उसके साथ न्याय हो उसकी महज इतनी ही आकांक्षा रहती है जो कि शायद मुश्किल से ही पूरी हो पाती है।

निचले स्तर पर एवम् अन्य विभागों के क्या हाल होंगे,,,,,,,
आप अंदाजा लगा सकते हैं कि संभागीय आयुक्त जैसा कार्यालय जहां की जल्दी से किसी आम आदमी का कोई कार्य नहीं पड़ता है वहां पर यह हाल है तो जहां आवाम के रोजमर्रा के कार्यों के लिए जिन विभागों में कर्मचारी अधिकारियों से दो चार होना पड़ता है जैसे नगर निगम ,प्राधिकरण, जिला मुख्यालय के अस्पताल, कृषि विभाग, स्वास्थ्य विभाग, खनिज विभाग, रसद विभाग, राजस्व विभाग, आदि कार्यालयों में क्या होता होगा अल्लाह मालिक है।
या फिर ऐसा भी कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार को इस देश की आवाम ने अंगीकार कर लिया है और इसे व्यवस्था का एक हिस्सा मान लिया है या फिर यह भी कहा जा सकता है कि आवाम की मानवीय संवेदनाएं शून्यता के शिखर पर पहुंच चुकी है दैनिक समाचार पत्रों में एवं सोशल मीडिया के माध्यम से प्रतिदिन कहीं ना कहीं किसी ना किसी कर्मचारी अथवा अधिकारी के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की ट्रैप कार्यवाही में पकड़े जाने गिरफ्तार होने की खबरें देखी सुनी एवं पढ़ी जाती है परंतु चूंकि मानवीय संवेदनाएं पूर्णतया नष्ट हो चुकी है यही कारण है कि आवाम ने भ्रष्टाचार की इस व्यवस्था को अंगीकार कर लिया है और इसके खिलाफ बोलने अथवा सोचने के लिए समय निकालना भी शायद मुनासिब नहीं समझते। आलेख को पूरा पड़ने के लिए धन्यवद्,,,,,

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