अगर पति-पत्नी साथ रहते हैं तो राज्य को कोई आपत्ति नहीं हो सकती, सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम व्यक्ति को जमानत दी
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक हिंदू महिला से शादी करने के बाद करीब 6 महीने से जेल में बंद मुस्लिम व्यक्ति को जमानत देते हुए कहा कि “राज्य को अपीलकर्ता और उसकी पत्नी के साथ रहने पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती.”न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, “हम मानते हैं कि प्रतिवादी-राज्य को अपीलकर्ता और उसकी पत्नी के एक साथ रहने पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है, क्योंकि उनका विवाह उनके संबंधित माता-पिता और परिवारों की इच्छा के अनुसार हुआ है.”
19 मई को पारित आदेश में पीठ ने कहा, “इन परिस्थितियों में, हम पाते हैं कि यह एक उचित मामला है, जिसमें अपीलकर्ता को जमानत की राहत दी जानी चाहिए. हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही लंबित रहने से अपीलकर्ता और उसकी पत्नी के अपनी मर्जी से साथ रहने में कोई बाधा नहीं आएगी.”
पीठ ने एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील को अनुमति दी, जिसे फरवरी 2025 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जमानत देने से इनकार कर दिया था. अपीलकर्ता को उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2018 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 के प्रावधानों के तहत अपनी धार्मिक पहचान छिपाने और हिंदू रीति-रिवाजों के तहत महिला से धोखे से शादी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
अपीलकर्ता के वकील ने दलील दी कि अपीलकर्ता के खिलाफ एक तुच्छ शिकायत केवल इसलिए दर्ज की गई है, क्योंकि उसने एक अलग धर्म को मानने वाली महिला से शादी की है. उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों के बीच विवाह एक तयशुदा विवाह था और दोनों पक्षों को तथ्य पता थे, और परिवारों ने स्वेच्छा से अपीलकर्ता की महिला के साथ शादी तय करने का फैसला लिया. “हालांकि, शादी के तुरंत बाद कुछ व्यक्तियों और कुछ संगठनों ने शादी पर आपत्ति जताई. इसके बाद दिसंबर 2024 में अपीलकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. अपीलकर्ता लगभग छह महीने से जेल में है”, वकील ने पीठ के समक्ष दलील दी.
यह तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए आरोप पत्र दायर किया जा चुका है और याचिकाकर्ता जमानत की राहत का हकदार है.
अपीलकर्ता के वकील ने आगे कहा कि अगर अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा कर दिया जाता है तो संभवतः अपीलकर्ता और उसकी पत्नी अपने परिवारों से अलग रहेंगे और बिना किसी बाधा के शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत करेंगे. राज्य सरकार के वकील ने तर्क दिया कि इस अपील में कोई दम नहीं है और इसे खारिज किया जा सकता है.
सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि “अपीलकर्ता को यथाशीघ्र संबंधित ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किया जाएगा और ट्रायल कोर्ट उसे जमानत पर रिहा कर देगा. बशर्ते कि एफआईआर से उत्पन्न कार्यवाही में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए वह ऐसी शर्तें लगाना उचित समझे”
पीठ ने निर्देश दिया कि अपीलकर्ता को आगामी सुनवाई में पूरा सहयोग करना चाहिए और उसे अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए. पीठ ने कहा, “शर्तों का कोई भी उल्लंघन अपीलकर्ता को दी गई जमानत को रद कर देगा. उपरोक्त निर्देशों के साथ, आपराधिक अपील की अनुमति दी जाती है.”
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पहले याचिकाकर्ता को जमानत देने से इनकार कर दिया था. यह मानते हुए कि उसके धर्म से संबंधित तथ्यों को शादी से पहले महिला और उसके परिवार को कथित तौर पर नहीं बताया गया था. याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया था कि उनके मुवक्किल की मां एक हिंदू है और वह एक हिंदू वातावरण में बड़ा हुआ है, हालांकि यह तर्क उच्च न्यायालय को संतुष्ट नहीं कर सका।
