हमारे अधिकांश पर्व नई फसल के आगमन और ऋतु परिवर्तन आदि प्राकृतिक परिवेश के परिवर्तन पर आधारित हैं। ऐसा ही एक पर्व है मकर संक्रान्ति। मकर एक राशि का नाम है और संक्रान्ति का अर्थ है ‘जाना’ अर्थात् मकर राशि में जाना। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश प्रयोजन है। यह सूचित करता है कि अब अंधकार पर प्रकाश की विजय होगी। इस दिन से रात छोटी होने लगती है और दिन बड़ा। दूसरे, छः मास दक्षिणायन में रहने के पश्चात् सूर्य उत्तरायण हो जाता है अर्थात् उसकी गति उत्तर दिशा की ओर हो जाती है। चूंकि उत्तरायण में प्रकाश की प्रबलता रहती है, अतः सभी शुभ कार्य इसी दिन से आरंभ होते है। मकर संक्रान्ति इस अर्थ से बड़ा दिन है कि इस दिन से ही शीत मंद हो जाती है और सूर्य प्रखर (तेज)।
इस प्रकार संक्रान्ति सूर्य पूजा का पर्व है। सूर्य कृषि का देवता है। मकर संक्रान्ति के दिन किसान भगवान् भास्कर (सूर्य) के प्रति अपनी कृतज्ञता दर्शाता है, क्योंकि सूर्य ही फसल को पकाता है। दक्षिण भारत में मकर संक्रान्ति को ‘पोंगल’ कहते हैं। असम में इसे ‘माघ बीहू’ के नाम से मनाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे ‘खिचड़ी’ और ‘माघी’ भी कहा जाता है। ‘खिचड़ी’ इसलिए कि इस दिन खिचड़ी बनाई जाती है और माघी इसलिए मकर संक्रान्ति माघ के महीने में मनाई जाती है।
मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगा, यमुना व अन्य नदियों और सरावरों में स्नान करके तिल, गुड़ व खिचड़ी आदि दान करने का बहुत महत्व है। शीत ऋतु में तिल, गुड़, मेवा आदि बलवर्द्धक पदार्थों के सेवन से शरीर स्वस्थ और वीर्यवान होता है।
वैसे तो मकर संक्रान्ति के दिन सभी नदियों और सरोवरों पर स्नानार्थियों का मेला सा लग जाता है किन्तु तीर्थराज प्रयाग और गंगा सागर पर तो इस पावन पर्व पर विशाल मेलों का आयोजन होता है, जहां देश के सभी भागों से लाखों लोग पुण्य प्राप्त करने के लिए वहाँ पहुँचते हैं।
मकर संक्रान्ति सनातनियों का महान पर्व है हमारे सभी कार्य उत्तरायण में ही आरंभ होते है। भीष्म -पितामह ने भी, जिन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, सूर्य भगवान के उत्तरायण (उत्तर दिशा) मे आने पर प्राण त्यागे। तब तक वह युद्ध स्थल में बाणों की शैया पर ही रहे, जो अर्जुन ने उनके लिए तैयार की थी।
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