बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले ए अजमेर,, बहुत निकले मेरे (झुनझुनवाला)अरमां मगर फिर भी कम निकले,,,
अजमेर, अजमेर संसदीय क्षेत्र की राजनीति में पिछले 4 वर्षों से कांग्रेस की राजनीति में एक नाम रिजु झुनझुनवाला हुआ करता था। झुनझुनवाला ने 2019 में कांग्रेस पार्टी से अजमेर संसदीय लोकसभा क्षेत्र का चुनाव लड़ा था उनके कांग्रेस का टिकट हासिल करने के बाद कांग्रेस पार्टी के कई समीकरण गड़बड़ा गए थे झुनझुनवाला ने अपनी एक अलग पहचान बनाने की कोशिश की हालांकि वे चुनाव हार चुके थे और अपनी पहचान बनाने के लिए भविष्य की राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए झुनझुनवाला ने स्वयंसेवी संगठनों का निर्माण कर अजमेर की जनता की सेवा करने का प्रयास किया लेकिन झुनझुनवाला के खजाने से निकलने वाली गंगा कुछ स्थानों पर ब्लॉक हो जाती थी जिससे कि अजमेर जिले की आवाम प्यासी की प्यासी ही रह गई और झुनझुनवाला को पता ही नहीं चला कि उनके द्वारा बहाई गई गंगा से अजमेर वासियों की प्यास क्यों नहीं भूज रही है।
हालांकि झुनझुनवाला ने कांग्रेस की राजनीति में अपने आप को जमाने के लिए प्रयास तो बहुत किए अशोक गहलोत से लेकर सचिन पायलट रघु शर्मा तक अपने प्रयासों में कोई कमी नहीं छोड़ी लेकिन कांग्रेस की राजनीति में घुसते ही तुरंत एक मुकाम हासिल कर लेना इतना आसान नहीं होता। हालांकि कहा तो यह भी जाता है कि झुनझुनवाला ने अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए दौलत का सहारा लिया लेकिन उनकी संवेदनशीलता राजस्थान में किसी को ज्यादा रास नहीं आई , झुनझुनवाला किस कदर बेआब्रू होकर अजमेर के कूचे से निकले हैं यह तो उनका दिल ही जानता है परंतु एक बात स्पष्ट है कि झुनझुनवाला एक संवेदनशील राजनेता के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे
जो कि कतिपय किनहीं कारण वश नहीं बना पाए और शायद यह कारण वह स्वयं भी भली-भांति जानते होंगे। झुनझुनवाला जैसी शख्सियत अजमेर संसदीय क्षेत्र को मिल रही थी परंतु नहीं मिल पाई, अजमेर की कॉन्ग्रेस राजनीति के होशियार दिग्गज से लेकर दरी बिछाने वाले कार्यकर्ता तक यह नहीं समझ पा रहे हैं कि झुनझुनवाला अजमेर क्यों तो आए और क्यों चले गए और गौरतलब बात यह है कि उनके आने और जाने से किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ा उनके द्वारा अजमेर की गरीब दलित बस्तियों में एक रुपए में स्वाभिमान भोजन करवाया जा रहा है लेकिन उसकी प्रसिद्धि भी उन्हें नहीं मिल पाई एक रुपए में भोजन करवाने वाले स्थान का किराया भी हजारों रुपए दिया जा रहा है।
कुछ जानकारों का कहना है कि अजमेर में झुनझुनवाला ने जो दो स्वयंसेवी गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से काम करवाने के प्रयास किए थे वह सब सीएसआर यानी कंपनी की सामाजिक जिम्मेदारी के तहत करवाए गए कार्य थे जिनका कहीं ना कहीं झुनझुनवाला को भी लाभ मिला है।
कांग्रेस पार्टी में किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा झुनझुनवाला के जाने से
राजनीति के क्षेत्र में झुनझुनवाला का अगला कदम क्या होगा यह तो अभी भविष्य के गर्भ में छिपा है लेकिन इतना तो स्पष्ट हो गया है कि अजमेर की राजनीति से झुनझुनवाला के बेआबरू होकर निकल जाने के बाद किसी को कोई विशेष फर्क नहीं पड़ा, उनके इस्तीफे की खबर भी अखबारों में एक बार प्रकाशित हुई उसके बाद उस खबर पर जिले के कांग्रेसी राजनीतिज्ञों ने प्रतिक्रिया तक भी देना उचित नहीं समझा।
झुनझुनवाला ने यह कहते हुए इस्तीफा दिया कि कांग्रेस पार्टी में प्रदेश स्तर पर उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी अशोक गहलोत और सचिन पायलट के दरबार में भी वह कई बार अपने द्वारा किए जा रहे प्रयासों को अमलीजामा पहनाने, बताने और भुनाने के लिए मुलाकात करने का प्रयास करते रहे लेकिन संभव नहीं हो पाया।
हालांकि कयास तो यह भी लगाए जा रहे हैं कि झुनझुनवाला भाजपा में जा सकते हैं और संभव हुआ तो अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र का चुनाव लड़ सकते हैं, वैसे भीलवाड़ा में भी जमीन तैयार करने के प्रयास लगातार जारी हैं अपनी संस्थाओं के माध्यम से परंतु इस सब में एक बात अवश्य कहीं जानी चाहिए कि झुनझुनवाला को राजनीति में धुआंधार बैटिंग करने के लिए एक मजबूत पीआर एजेंसी की बेहद जरूरत है।
वरना वह जहां भी जाएंगे शातिराना किस्म के लोगों के गिरोह का शिकार हो जाएंगे जैसा कि अजमेर में हुआ था।
वैसे अजमेर की जनता को थोड़ा सा तो दुख मनाना ही चाहिए की संवेदनशील राजनीति करके जनता की सेवा करने का मानस बना कर आया एक राजनेता उनकी सेवा करने से वंचित रह गया।
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