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राष्ट्रीय पार्टी” का दर्जा कैसे मिलता है — क्या, कौन और क्यों…??

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“राष्ट्रीय पार्टी”– क्या, कौन और क्यों…??

अभी दो-तीन दिन पहले चुनाव आयोग ने कुछ राजनैतिक दलों के “राष्ट्रीय पार्टी” के दर्जे को खत्म कर दिया है, कुछ नए राष्ट्रीय दल घोषित किए गए हैं तथा कुछ को बरकरार रखा गया है। कुछ मित्रों ने मुझसे पूछा है कि ये आखिर किस आधार पर किया जाता है, और बीएसपी की मान्यता की वर्तमान में क्या स्थिति है?

चुनाव आयोग ने इस मामले में एक स्पष्ट पैमाना बनाया है (जिसे इसकी वैबसाइट पर भी देखा जा सकता है)

 
इस के अनुसार किसी भी पार्टी को “राष्ट्रीय पार्टी” का दर्जा हासिल करने/या बरकरार रखने के लिए निम्नलिखित सभी मानकों पर पूरा उतरना पड़ेगा, जो इस प्रकार हैं;

(1) किसी भी पार्टी को देश के कम से कम चार राज्यों में  6% वोट (गत विधान सभा या लोक सभा चुनावों में) प्राप्त अवश्य करने चाहिए….. तथा

(2)  उस पार्टी को लोक सभा की कुल सीटों में से 2% (अर्थात कम से कम 11 सीटें) कम से कम अलग अलग तीन राज्यों से प्राप्त होनी चाहिए।

ध्यान देने की बात है कि उपरोक्त रूप में “दोनों मानकों पर खरा उतारने के बाद ही” किसी पार्टी को “राष्ट्रीय पार्टी” का दर्जा हासिल होगा या वह उसे बरकरार रख पाएगी।

आम आदमी पार्टी ने इस मानक को पूरा किया है इसलिए उनकी मान्यता राष्ट्रीय पार्टी के  रूप में चुनाव आयोग द्वारा घोषित की गयी है। तृणमूल काँग्रेस, एनसीपी लोक सभा सांसदों की संख्या के हिसाब से मानक पूरा करने के बावजूद चार राज्यों में 6% वोट हासिल न करने के कारण अब इस सूची से निकाल दिये गए हैं।

अब बात बी॰एस॰पी॰ की…..
सन 2014 के लोक सभा चुनावों में बीएसपी को केवल 3 राज्यों में ही  6% से ज्यादा वोट मिले थे तथा इसकी  लोक सभा सीटें “शून्य” (zero) थीं। उस हिसाब से उसी समय इसकी राष्ट्रीय मान्यता रद्द हो जानी चाहिए थी लेकिन चुनाव आयोग की ‘करुणा-दृष्टि’ के चलते सन 2016 में चुनाव आयोग द्वारा इस मामले में एक नया नियम लाया गया जिसके चलते इस बाध्यता (11 लोक सभा  सांसद तथा 4 राज्यों में 6% वोट) को सन 2024 तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

2019 के लोक सभा चुनावों में तथा पिछले 7-8 वर्षों में देश भर में हुये विभिन्न विधान सभा चुनावों में स्थिति ये रही है कि 2019 लोक सभा चुनावों में बीएसपी (BSP) को मात्र 10 सीटें (अर्थात ग्यारह  से एक कम) मिली थी। लेकिन इसके साथ देश के केवल एक राज्य, उत्तर प्रदेश को छोडकर (2022 वि॰सभा चुनाव में 13% वोट) किसी भी अन्य राज्य में इसका वोट 6% तक नहीं पहुँच पाया। अधिकांश में ये ½ , 1 या 2 प्रतिशत ही है।

अर्थात, चुनाव आयोग के दोनों मानकों के अनुसार 2014 से लेकर वर्तमान समय में बीएसपी “राष्ट्रीय पार्टी” की मान्यता के लिए ज़रूरी अर्हता दूर दूर तक भी पूरी नहीं करती है।

 
लेकिन फिर भी दलित, शोषित, पीड़ित, वंचित तथा सवर्ण समाज के गरीबों (अर्थात EWS) के ऊपर करुणा,  दया-भाव व मानवीय दृष्टिकोण दिखाते हुये भारत के चुनाव आयोग ने जो बीएसपी के राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे को बरकरार रखने का जो ऐतिहासिक निर्णय लिया है वह वाकई काबिले तारीफ है। इससे हमारे लोकतंत्र को अवश्य एक नयी ताकत और ऊर्जा मिलेगी।

जो लोग भारतीय चुनाव आयोग (ECI) पर दोहरा रवैया अपनाने या बेईमानी का झूठा इल्ज़ाम लगाते रहते हैं, ये उनके चेहरे पर एक जोरदार तमाचा है।

इस महान उपलब्धि के लिए बीएसपी का शीर्ष नेत्रत्व, उनके राजनैतिक-कानूनी सलाहकार,   शीर्ष नेत्रत्व जी पूरा परिवार, भाई-भतीजे, तमाम नयी-पुरानी बहुएँ, चाचा-ताऊ-फूफा, बुआ-मौसी-मामी आदि आदि सभी बधाई के पात्र है। अपना सर्वस्व त्याग कर इन सबने समाज के लिए एक “राष्ट्रीय पार्टी” का निर्माण कर जो ऐतिहासिक योगदान दिया है उसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है।
            *
प्रमोद कुरील (पूर्व सांसद-राज्य सभा)
राष्ट्रीय अध्यक्ष : बहुजन नेशनल पार्टी
12-03-2023                       

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