पहले सबसे बड़े भाजपा के प्रदर्शन में वसुंधरा राजे की गैरमौजूदगी क्या भाजपा की सोची-समझी रणनीति है,,,,, या इसके कोई और इशारे हैं
जयपुर 2 अगस्त 2023, राजस्थान में भाजपा का सबसे बड़ा नाम। लेकिन इन दिनों फिर उपेक्षित। क्या उन्हें किनारे करके चुनाव में उतरेगी भाजपा। कहा जा रहा है कि वसुंधरा के कार्यालय को सोमवार की शाम कार्यक्रम में आने के लिए फोन किया गया था, लेकिन तब तक वह दिल्ली के लिए निकल चुकी थी। ताज्जुब की बात है कि जो कार्यक्रम कई दिन पहले तय हो चुका था। उसके लिए भी वसुंधरा राजे को कुछ घंटे पहले फोन किया गया। यह बेहद हास्यास्पद है जाहिर है या तो उन्हें कार्यक्रम से दूर रखना था या महत्व नहीं देना था। जिस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए खुद मोदी ने संदेश देकर भाजपा कार्यकर्ताओं से अपील की हो,उस कार्यक्रम से राजे की अनुपस्थिति बहुत कुछ संदेश देती है।
वसुंधरा राजे को लेकर भाजपा तय नहीं कर पा रही है कि उन्हें राजस्थान के चुनाव मैदान में रखना है या नहीं। वसुंधरा राजे भारतीय जनता पार्टी के लिए सांप के गले में फंसी हुई वह छछूंदर बन चुकी है जोना भाजपा के लिए उगलते बन रही है और ना ही निकलते वसुंधरा को इस प्रकार अंडर एस्टीमेट करना भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है वहीं कांग्रेस पार्टी के लिए सरकार रिपीट होने का दावा सच साबित हो सकता है।
वसुंधरा राजे भारतीय जनता पार्टी में स्वयं को बेहद आहत महसूस कर रही है और बहुत मुमकिन है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में वसुंधरा राजे सिंधिया भारतीय जनता पार्टी को उसकी औकात दिखाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए स्वतंत्र रहेंगी।
भाजपा ने पिछले दिनों वसुंधरा राजे को लगातार तीसरी बार राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है। लेकिन उनकी रूचि कभी भी राष्ट्रीय राजनीति में रही ही नहीं। उन्होंने हमेशा राजस्थान में अपनी सक्रियता बनाए रखी। इसके लिए उन्होंने कई बार धार्मिक यात्रा के नाम पर राज्य में निजी दौरे भी किए और आलाकमान को अपनी ताकत दिखाई।इसमें कोई शक नहीं कि पूरे राजस्थान में जिस तरह कांग्रेस में अशोक गहलोत के समर्थकों की भीड़ मिल जाएगी,वैसे ही भाजपा में यह रुतबा वसुंधरा राजे को हासिल है। शायद उनकी यही ताकत मोदी और अमित शाह को चुभती है। इसीलिए 2018 के बाद से ही उन्हें हाशिए पर लाने की पूरी कोशिश की जा रही है। लेकिन वसुंधरा है कि मानती ही नहीं। बीते दिनों प्रधानमंत्री मोदी की सभा में बैनर में उनकी फोटो लगाने और फिर अमित शाह की उदयपुर सभा में उनका नाम नहीं होने के बावजूद उनका भाषण कराने से लगने लगा था कि वसुंधरा को राजस्थान में भाजपा महत्व देगी। लेकिन कल के कार्यक्रम में उनकी गैर मौजूदगी ने यह साबित कर दिया है कि वसुंधरा राजे अब शायद राजस्थान के मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं होगी।
यूं यह तय हो चुका है कि राजस्थान में भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही वोट मांगेगी और कर्नाटक में करारी हार के बाद भी किसी स्थानीय नेता को आगे नहीं करेगी। ऐसे में अगर भाजपा की सरकार बनती है तो यहां मोदी और शाह की पसंद का ही मुख्यमंत्री बनेगा और ऐसे लोगों में केंद्रीय मंत्री अश्वनी वैष्णव, भूपेंद्र यादव अर्जुन मेघवाल जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं। यूं सीएम बनने के सपने राजेंद्र राठौड़,सीपी जोशी, गजेंद्र सिंह शेखावत,सतीश पूनिया, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ आदि भी देख ही रहे हैं। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वसुंधरा राजे अपनी उपेक्षा को इतनी आसानी से पचा लेगी या विधानसभा चुनाव में कोई बड़ा खेल करेगी।
बड़ा खेल तो तय है क्योंकि लगातार और निरंतर भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा राजस्थान में वसुंधरा राजे की की जा रही अनदेखी राजस्थान की जनता और स्वयं वसुंधरा राजे इससे बहुत अच्छी तरीके से वाकिफ है आखिर घाट राजनेता जो है परंतु फिर भी भारतीय जनता पार्टी से अलग रहकर वसुंधरा राजे भाजपा को कितना नुकसान पहुंचा सकती है या किसी तीसरे मोर्चे की सशक्त नेता बन सकती है या फिर दोबारा कांग्रेस सरकार को रिपीट कर रिवाज बदलने की कोशिश कर सकती है आने वाला चुनाव किसी भी करवट बैठ सकता है और एक बात और कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जिस कदर कॉन्फिडेंट नजर आ रहे हैं उससे तो यही लगता है कि अशोक गहलोत का वसुंधरा राजे से किसी ना किसी प्रकार से कोई समझौता राजस्थान की राजनीति के लिए हुआ है अमित शाह और नरेंद्र मोदी के लाख ना चाहने के बावजूद भी वसुंधरा राजे एक ऐसा मास लीडर चेहरा है जिसे भारतीय जनता पार्टी की अनदेखी बेहद नुकसानदायक साबित हो सकती है।
आने वाले विधानसभा चुनावों में वैसे तो अनेक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने अपने अपने स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने का प्रयास आरंभ कर दिया है परंतु फिर भी राजस्थान की जनता अभी भी इन दोनों ही मुख्य पार्टियों के बीच में उलझी रहती है हनुमान बेनीवाल जाट बेल्ट में हो सकता है कुछ कमाल दिखा दे या बहुजन समाज पार्टी आम आदमी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास पासवान जैसी दल यदि अपनी ज्यादा ताकत का इस्तेमाल करते हैं तो कहीं ना कहीं कांग्रेस को ही नुकसान होगा परंतु फिर भी यदि वसुंधरा राजे एक सोची-समझी रणनीति के तहत इन दलों को अपने काबू में करके तीसरे मोर्चे का नेतृत्व करती है तो राजस्थान का इतिहास शायद इस बार कुछ और ही हो सकता है।
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