: रमेश कुमार विश्वास किस्मत का बेताज बादशाह,जिसने विमान हादसे में मौत को भी दी मात…
चमत्कार ही हैं…
चालीस साल के विश्वास रमेश इस हादसे में बचने वाले शायद एक मात्र व्यक्ति हैं। विश्वास, जिनके पास अभी भी उनका बोर्डिंग पास जेब में था, ने एचटी को बताया, “जब मैं उठा, तो मेरे चारों ओर लाशें पड़ी थीं। मैं डर गया था। मैं उठकर दौड़ पड़ा। मेरे चारों ओर विमान के टुकड़े बिखरे हुए थे। किसी ने मुझे पकड़ा और एम्बुलेंस में डालकर अस्पताल ले गया।”
विश्वास ने बताया कि वह पिछले 20 वर्षों से लंदन में रह रहे हैं और उनकी पत्नी और बच्चा भी वहीं रहते हैं।
उन्होंने बताया कि उनके भाई अजय विमान में एक अलग पंक्ति में बैठे थे। “हम दीव घूमने गए थे। वह मेरे साथ यात्रा कर रहे थे और अब मुझे वह कहीं नहीं मिल रहे हैं। कृपया मेरी मदद करें उन्हें ढूंढने में,” उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा है।
: नियति की मंजूरी,,,,
खबर आ रही है कि दो यात्री किसी चमत्कार से बच निकले, लेकिन सच्चाई अभी धुंधली थी। लोग कहते हैं, “जिसे भगवान बचाना चाहते हैं, उसे मौत भी छू नहीं सकती।” और ऐसा ही एक चमत्कार हुआ भूमि चौहान के साथ। वह उस विमान में सवार होने वाली थीं, लंदन के लिए उत्साह से भरी, सपनों को पंख लगाने को बेताब। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
अहमदाबाद की उलझी, शोर भरी सड़कों ने आज भूमि को एक अनचाहा वरदान दे दिया। ट्रैफिक की भयंकर जाम में फंसकर वह सरदार वल्लभभाई हवाई अड्डे पर 10 मिनट की देरी से पहुंचीं। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के कठोर नियम—दो घंटे पहले पहुंचना, सामान की गहन जांच, हर दस्तावेज का बारीकी से निरीक्षण, और हर छोटी-बड़ी वस्तु की तलाशी—इन सब ने उस रात भूमि का साथ नहीं दिया। वह समय पर पहुंचने के लिए बेचैन थीं, पसीने से तर-बतर, दिल की धड़कनें तेज़। लेकिन 10 मिनट की देरी ने उनकी किस्मत का दरवाजा बंद कर दिया।
एयरपोर्ट कर्मचारियों ने उनकी सारी मिन्नतें ठुकरा दीं। “मैम, नियम तो नियम हैं,” उन्होंने ठंडे लहजे में कहा। भूमि निराश, हताश, और गुस्से से भरी थीं। वह टर्मिनल के कांच के उस पार खड़ी थीं, आंसुओं और शिकायतों के बीच उस विमान को देख रही थीं, जो उनके सपनों को लेकर उड़ान भरने वाला था। वह अपनी किस्मत को कोस रही थीं, ट्रैफिक को, शहर को, और शायद खुद को भी।
भूमि आंखों में आँशु लिए उस विमान को टेक ऑफ होता देख रही थी
तभी, अचानक एक जोरदार धमाका हुआ। आसमान में आग का गोला बनकर फ्लाइट AI-171 धरती की ओर गिरने लगी। चीखें, अफरा-तफरी, और दिल दहला देने वाला मंज़र। भूमि की आंखें फटी की फटी रह गईं। वह पत्थर की मूर्ति-सी जड़ हो गईं, उनके हाथ से बैग छूटकर फर्श पर गिर पड़ा। जिस विमान को वह मिनटों पहले चढ़ने की जिद कर रही थीं, वह अब लपटों में जल रहा था।
वहां मौजूद हर शख्स की सांसें थम गई थीं। भूमि के कानों में सिर्फ़ सायरनों की आवाज़ और उनके दिल में एक अजीब-सा खालीपन था। वह अभी भी उस दृश्य को पलक झपकते देख रही थीं—वह विमान, वह आग, वह तबाही। उनके पैर कांप रहे थे, और दिमाग सुन्न। वह सदमे में थीं, यह सोचकर कि अगर वह 10 मिनट पहले पहुंच जातीं, तो शायद वह भी उस आग के हवाले हो चुकी होतीं।
वह ट्रैफिक, जिसे वह कोस रही थी।, अब उनकी रक्षक बन चुका था। लेकिन आज दोपहर भूमि चौहान की आंखों में न तो खुशी थी, न राहत। बस एक गहरा, ठंडा डर था—और एक सवाल, जो हुआ, क्या वह वाकई हकीकत थी, या कोई भयानक सपना?
