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समय से पहले जन्मी बच्ची को सवा महीने बाद मिली माँ की गोदबच्ची को 40 दिन तक बाई—पेप और वेंटीलेटर पर रखा गया, अब स्वस्थ

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समय से पहले जन्मी बच्ची को सवा महीने बाद मिली माँ की गोद
बच्ची को 40 दिन तक बाई—पेप और वेंटीलेटर पर रखा गया, अब स्वस्थ
बच्ची का दिल प्रतिमिनट 250 की गति से धड़क रहा था
प्रसूता अवस्था में कुर्सी से गिर जाने के कारण करनी पड़ी थी डिलीवरी
मित्तल हॉस्पिटल के एनआईसीयू स्टाफ और चिकित्सकों की टीम ने दी सेवाएं

अजमेर, 26 सितम्बर ()। मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर अजमेर में प्री टर्म डिलीवरी के साथ, लो बर्थ वेट (एलबीडब्ल्यू) जन्मी एक बच्ची को 70 दिन बाद उसके माता— पिता की गोद में सौंप दिया। बच्ची को जन्म से 40 दिन तक बाई—पेप और वेंटीलेटर पर गहन चिकित्सा निगरानी में रखा गया। प्रसूता 27 सप्ताह की गर्भवती थी तब कुर्सी से गिर जाने के कारण गंभीर व जोखिमपूर्ण अवस्था में प्रसव कराया गया। जन्म के समय शिशु का वजन मात्र 970 ग्राम था और उसका जीवन रक्षित रख पाना बहुत ही चुनौती भरा था।
मित्तल हॉस्पिटल के गायनोकोलॉजिस्ट डॉ अदिति सिंह राव, नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ रोमेश गौतम, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ श्वेता कोठारी और मेटरनिटी एवं एनआईसीयू नर्सिंग स्टाफ ने टीम भावना से बच्ची के साथ मेहनत कर उसे सुरक्षित कर उसके माता—पिता को सौंप दिया। हॉस्पिटल से घर जाते समय शिशु का वजन 1600 ग्राम हो गया था।
मित्तल हॉस्पिटल की सीनियर गायनोकोलॉजिस्ट डॉ अदिति सिंह राव ने बताया कि अजमेर की ही रहने वाली प्रसूता का जोखिमपूर्ण अवस्था में प्रसव कराया गया। प्रसूता के 27—28 सप्ताह की गर्भावस्था के समय हादसा होने से तबियत खराब हो गई थी। उन्होंने बताया कि सामान्य रूप से पूर्ण प्रसव में 37 से 40 सप्ताह का समय लगता है। समय पूर्व प्रसव से नवजात का वजन भी मात्र 970 ग्राम था, लिहाजा उसकी रक्षा चिकित्सकों के लिए बड़ी चुनौती हो गई थी।
मित्तल हॉस्पिटल के नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ रोमश गौतम ने बताया कि जन्म के बाद बच्ची दिल की धड़कन बहुत तेज थी। सामान्य रूप से धड़कन 130 प्रति मिनट से 160 प्रति मिनट होती है। बच्ची की दिल की धड़कन 250 के लगभग थी। उन्होंने बताया कि जन्म के बाद बच्ची के आंतों में इंफेक्शन हो गया। इससे बच्ची को सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी। उसे वेंटीलेटर पर रखा गया। इस दरम्यान बच्ची के शरीर पर सूजन हो गई। उपचार किया गया करीब 20 से 25 दिन तक बच्ची के साथ एनआईसीयू के स्टाफ ने भरपूर मेहनत की और आखिर बच्ची को सुरक्षित कर लिया गया।
नवजात बच्ची के पिता अशोक दाधीच ने बताया कि उन्होंने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी। मित्तल हॉस्पिटल के चिकित्सकों एवं एनआईसीयू के नर्सिंग स्टाफ ने बहुत मेहनत की जिससे उनकी बच्ची आज उनके हाथों में है। उन्होंने बताया कि जच्चा व बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। बच्ची का वजन 1600 ग्राम हो गया है।
उल्लेखनीय है कि अजमेर संभाग में एक मात्र मित्तल हॉस्पिटल ही है जहां प्री टर्म डिलीवरी के साथ, लो बर्थ वेट (एलबीडब्ल्यू) नवजात का जीवन रक्षित बनाए रखने के लिए सभी सुपरस्पेशियलिटी सेवाएं और साधन उपलब्ध है।
प्री टर्म डिलीवरी में शिशु का बचाना ही मकसद नहीं होता……..
मित्तल हॉस्पिटल के नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ रोमश गौतम ने कहा कि प्री टर्म डिलीवरी में शिशु को बचाना ही मकसद नहीं होता, बच्चा जीवित रहने के बाद भी अच्छे से बोल सके, समझ सके, चल सके, खाना पीना ठीक से कर सके, यानी उसके सारे अंग सही से काम करने लगे इस सब को भी जांचा जाता है। उन्होंने बताया कि पिछले दो साल में मित्तल हॉस्पिटल में ढाई सौ से अधिक बच्चों को जो कि समय से पूर्व जन्में थे उन्हें सुरक्षित उनके माता पिता की गोद में सौंपा गया है। मित्तल हॉस्पिटल में प्रीमेच्योर जन्में बच्चों के जीवित रहने की दर 97 प्रतिशत है। सबसे अहम बात है कि किसी भी प्रीमेच्योर बच्चे को रेफर कर अजमेर से बाहर नहीं भेजना पड़ा। यह एक चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ के धैर्य, देखरेख और मेहनत को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि शिशु के उपचार में अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक डॉ दीपक अग्रवाल, नर्सिंग अधीक्षक राजेन्द्र गुप्ता, एनआईसीयू स्टाफ स्वर्णलता एंड्रयूज एवं टीम का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
प्रसूता और नवजात को मिलता है उपयुक्त वातावरण……………
निदेशक डॉ दिलीप मित्तल ने बताया कि प्रीमेच्योर शिशुओं को संक्रमण रहित वार्म वातावरण में रखना, नवजात पर निरंतर नजर बनाए रखना, बीमारी का पता कर उसका तुरंत उपचार शुरू करना, शिशु के वजन और विकास में अपेक्षित वृद्धि पर बराबर निगरानी रखना प्रमुख होता है। मित्तल हॉस्पिटल में संसाधनों की दृष्टि से नवजात शिशुओं के लिए आधुनिक उपकरण उपलब्ध हैं, जिससे नवजात शिशु के श्वास, आँख, ब्रेन, हार्ट, कान आदि से संबंधित किसी भी परेशानी की जाँच व उपचार तुरंत संभव हो पाता है।

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