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वसुंधरा का मोदी को सियासी संदेश, वे दिल्ली नहीं जा रही भाजपा में हलचल तेज

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क्या राहुल गांधी ने जताई नाराजगी या किया गहलोत को अलर्ट, वसुंधरा ने भी कहा में दिल्ली नहीं जा रही == रमेश शर्मा @ ब्लॉग 0650====राजस्थान की कांग्रेस की राजनीति में पिछले लंबे समय से चल रही गतिविधियों से यही एहसास होता है कि राजस्थान कांग्रेस में आलाकमान चाहता है वह कुछ नहीं होता है होता वही है जो गहलोत चाहते हैं। वैसे तो यह संकेत 2018 के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी और प्रियंका के चने के बावजूद भी गहलोत का मुख्यमंत्री बना यही संकेत दे रहा है लेकिन इसके आगे दोनों के बीच गहलोत और पायलट के बीच बड़ी दूरियां 25 मार्च को उस समय सारी दूरियां लांघ गई। जब सोनिया गांधी के दूत के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माखन कांग्रेस विधायक दल की बैठक में रायशुमारी करने पहुंचे थे। इसके विपरीत कांग्रेस के 75 विधायकों में दोनों पर्यवेक्षकों द्वारा आहूत बैठक का बहिष्कार किया गया था। इसका प्रमाण यह है की कांग्रेस के तीन नेताओं धारीवाल जोशी और धर्मेंद्र राठौर को दोषी माना जाने के बावजूद भी उनके खिलाफ का अनुशासन समिति कोई कदम नहीं उठा सकी और तीन दिन पहले राहुल गांधी के जयपुर आगमन से पहले क्लीन चिट देकर अपने आप को बोना साबित कर दिया। इतना ही नहीं राहुल गांधी के स्वागत के बैनर्स मैं सचिन पायलट का फोटो नही लगा कर एक बार पायलट को फसाने की कोशिश फिर से की गई। अलबत्ता गहलोत ने विभिन्न योजना और लाभार्थियों से सीधा संवाद कराकर गांधी को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की गई कि बिना सचिन पायलट के लिए राजस्थान में सरकार रिपीट होगी। लेकिन राहुल गांधी इस बात से आश्वस्त नहीं लगे। जिसका प्रमाण है कि गहलोत ने एक टीवी चैनल को दिए गए विशेष साक्षात्कार में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस की सरकार बनने की उम्मीद जताई लेकिन राजस्थान के लिए कहा कि वहां बराबर का मुकाबला है। इस बात से दो संकेत मिलते हैं यह तो राहुल गांधी सरकार रिपीट करने के लिए गहलोत को और ज्यादा तैयारी करने के लिए अलर्ट कर रहे हैं या फिर सुबह भी यही समझते हैं कि अकेले गहलोत द्वारा सरकार रिपीट करना मुश्किल हो सकता है।। संभवतया पहला मौका होगा जब राहुल गांधी ने प्रत्यक्ष रूप से एक बार गहलोत को उलझन में डाल दिया है। वैसे भी वैसे भी यह स्पष्ट है कि सचिन पायलट जहां जहां भी पहुंचते हैं उनके समर्थकों की संख्या सबको आश्चर्य में डाल देती है।। और गालों द्वारा सचिन पायलट को इग्नोर करने का मतलब सीधा है कि इतने सैलाब को वे खुद अपने विरुद्ध खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं जो चुनाव के समय में बहुत खतरनाक है।। सबसे बड़ी बात तो यह है कि गहलोत ने सचिन पायलट को जो कुछ नहीं कहना चाहिए था वह कुछ कह कर भी उन्हें उकसाने की जी भरकर कोशिश की लेकिन पायलट का धैर्य कार्यकर्ताओं की सहानुभूति की पूंजी के रूप में उनके साथ है। और ऐसे में अगर सचिन पायलट को इग्नोर कर दिया गया तो जो संभावना है राहुल गांधी ने टीवी चैनल के साक्षात्कार में दर्शाइ वह सही हो सकती है। इसी प्रकार भाजपा भी वसुंधरा को दिल्ली में ही एडजस्ट करने के प्रयास रत हैं लेकिन वसुंधरा ने उनको धागा बांधने पहुंचे महिलाओं के लिए प्रति निधि मंडल को स्पष्ट कह दिया है कि वे राजस्थान नहीं छोड़ रही है। सियासी गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा तेज है कि क्या वाकई में वसुंधरा राजे को यह अहसास हो रहा कि उन्हें शीर्ष नेतृत्व केंद्र में ले जाने की तैयारी कर रहा है। तब ही तो वसुंधरा राजे को इस तरह का बयान देने की जरूरत महसूस हुई। विधानसभा चुनाव नजदीक होने के चलते वसुंधरा के इस बयान से बीजेपी की सियासत में हलचल तेज हो गई है। वहीं राजनीतिक जानकार इस बयान को लेकर अपने-अपने मायने निकल रहे हैं। दूसरी ओर अब सियासत की नजरे बीजेपी हाईकमान पर टिकी हुई कि वसुंधरा को लेकर अब बीजेपी का क्या रुख होगा? कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भाजपा में वसुंधरा और कांग्रेस में सचिन पायलट के अनदेखी विधानसभा चुनाव को त्रिशंकु सरकार की तरफ मोड देगी।

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