राजस्थान में आसान नहीं वन स्टेट-वन इलेक्शन
टालने पड़ सकते हैं जनवरी 2025 में होने वाले चुनाव, कोर्ट में अटक सकता है मामला
- राजस्थान में पंचायतीराज संस्थाओं और शहरी निकायों के एक साथ चुनाव कराना मुश्किल है। मामला कानूनी पेचीदगियों में उलझ गया है।
- राज्य सरकार वन स्टेट वन इलेक्शन को लेकर कैबिनेट सब कमेटी बनाने जा रही है। इसके लिए सीएमओ प्रस्ताव भेजा गया है। विधि विभाग के स्तर पर अलग से मंथन चल रहा है।
- कैबिनेट सब कमेटी एक साथ चुनाव का ड्राफ्ट तैयार करके जनता से राय भी मांग सकती है। जनता की राय और कानूनी सलाह के आधार पर कमेटी सिफारिशें देगी।
- एक साथ चुनाव करवाने के लिए अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव टालने होंगे।
- सरकार इसके लिए कानूनी रास्ता तलाश रही है।
- मुख्य सचिव सुधांश पंत की अध्यक्षता में वन स्टेट वन इलेक्शन को लेकर कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं।
- राज्य में 213 शहरी निकाय हैं। इनके चुनाव एक साथ कराने हैं। इनमें 11 नगर निगम, 33 नगर परिषद और 169 नगर पालिकाएं हैं।
- पंचायतीराज में 11341 ग्राम पंचायतों, 352 पंचायत समितियों और 33 जिला परिषदों के चुनाव एक साथ करवाने हैं।
- नए जिलों के हिसाब से चुनाव करवाए तो जिला परिषदों की संख्या 50 हो जाएगी।
- अगले साल 2025 में जनवरी में 6975 ग्राम पंचायतों, मार्च में 704 और अक्टूबर में 3847 ग्राम पंचायतों का 5 साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है। इन सबके साथ चुनाव कराने के लिए आधी पंचायतों के चुनाव आगे पीछे करने होंगे।
- दिसंबर 2025 में 21 जिला परिषदों, सितंबर-अक्टूबर 2026 में 8 और दिसंबर 2026 में 4 जिला परिषदों का कार्यकाल पूरा हो रहा है।
- इसी तरह दिसंबर 2025 में 222 पंचायत समिति के मेंबर और प्रधानों का कार्यकाल पूरा होगा। सितंबर 2026 में 78, अक्टूबर 2026 में 22 और दिसंबर 2026 में 38 पंचायत समितियों का कार्यकाल पूरा हो रहा है।
- राज्य निर्वाचन आयोग के पूर्व उपसचिव अशोक कुमार जैन ने कहा- एक साथ चुनाव करवाने में पहली बाधा संवैधानिक प्रावधान है। 73वें व 74वें संविधान संशोधन में ही यह प्रावधान है कि पंचायतीराज संस्थाओं-नगरीय निकायों के 5 साल में चुनाव करवाने होंगे। यहां चुनावों को टालने का प्रावधान नहीं है।
- विशेष परिस्थितियों में वर्ष 2019-2020 में कोरोना के कारण चुनाव समय पर नहीं होने का एकमात्र मामला। तब भी मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था। संविधान के प्रावधान को राज्य सरकार बदल नहीं सकती। दूसरी अड़चन सुप्रीम कोर्ट का फैसला है, जिसके अनुसार ओबीसी के राजनीतिक पिछड़ेपन को साबित करने के लिए डेडीकेटेड आयोग बनाकर क्वांटिफाइड डेटा से उसे जस्टिफाइड करना होगा। तब तक चुनाव नहीं हो सकते। जहां तक मेरी जानकारी है, राजस्थान में अभी तक इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ।
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