बाड़मेर। डॉक्टरों की लापरवाही ने मरीजों की जिंदगी पर डाला खतरा – अपनी क्लीनिक चलाने के साथ-साथ नॉन प्रैक्टिस भत्ता भी उठा रहे हैं, जबकि अस्पताल में हो रहा है एक शर्मनाक खेल
बाड़मेर के अस्पतालों में हालात अब भयावह हो चुके हैं। मरीजों की लापरवाही से हो रही मौतें, डॉक्टरों की काली करतूतें और अस्पताल की दुर्दशा ने इस जगह को असहनीय बना दिया है। डॉक्टरों ने न केवल अपनी जिम्मेदारियों को त्याग दिया है, बल्कि नॉन प्रैक्टिस भत्ता उठाने के बावजूद अपनी क्लीनिक चला रहे हैं, जैसे कि अस्पताल में मरीजों की जरूरतें कोई मायने नहीं रखतीं।
दवाइयों की कमी, निजी लैब पर जांच के नाम पर लाखों रुपए कमीशन लेने की बात हो, या अस्पताल में गंदगी के ढेर लगे होने की – यह सब कुछ चौंकाने वाला है। मरीजों की महीनों तक जांच नहीं हो रही है, और जब कोई असामान्य लक्षण दिखाते हैं, तो उन्हें जवाब मिलता है, “आपकी समस्या छोटी है, थोड़ा धैर्य रखें।” लेकिन धैर्य रखने का कोई फायदा नहीं है, जब सही समय पर इलाज नहीं मिलता।
इतना ही नहीं, अस्पताल में महिलाओं के साथ छेड़खानी की घटनाएं भी सामने आई हैं। जब मीडियाकर्मी इस शर्मनाक सच को उजागर करने की कोशिश करते हैं, तो डॉक्टर भड़क जाते हैं और अपनी सफेद वर्दी की आड़ में छिपने की कोशिश करते हैं। अपनी इन काली करतूतों को छिपाने के लिए उन्होंने कलेक्टर के पास ज्ञापन भी सौंपा है, जिसमें मीडियाकर्मियों और नेताओं को दोषी ठहराया गया है। यह ज्ञापन दरअसल एक तरह का बचाव है, ताकि उनकी अनियमितताएं छिपी रहें और जनता का ध्यान भटक सके।
यह सफेद वर्दी अब लूटेरों की पहचान बन गई है, जो मरीजों की मुसीबतों का फायदा उठाकर अपनी जेबें भरने में लगे हैं। क्या यही है डॉक्टरों की नैतिकता? क्या यही है उनकी पेशेवर जिम्मेदारी? जब हम सफेद कोट पहनने वालों को भगवान मानते थे, अब उन्हें लुटेरों का खिताब देने में भी हिचक नहीं होती। बाड़मेर के अस्पताल की स्थिति देखकर ऐसा लगता है कि मरीजों की जिंदगी एक बार फिर खतरे में है, और यह सब उन डॉक्टरों के कारण है जो केवल अपना स्वार्थ साधने में लगे हैं।
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