September 19, 2024

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रोज पैदल खाटूश्याम जाने वाली महिला भक्त की मौत:ध्वज चढ़ाने जाते वक्त कार ने टक्कर मारी, 11 साल से जा रही थी

रोज पैदल खाटूश्याम जाने वाली महिला भक्त की मौत:ध्वज चढ़ाने जाते वक्त कार ने टक्कर मारी, 11 साल से जा रही थी

सीकर/रींगस

कार की टक्कर से खाटूश्याम मंदिर जा रही युवती की मौत हो गई। हादसे में जान गंवाने वाली युवती खाटूश्यामजी की परम भक्त थी। वह 11 साल पहले सरकारी हॉस्पिटल में संविदा की नौकरी छोड़कर खाटूश्यामजी की सेवा में लग गई थी। वह हर दिन पदयात्रा करके खाटूश्यामजी को निशान (ध्वजा) चढ़ाने जाती थी। हादसा रींगस में खाटूश्यामजी सड़क मार्ग पर बुधवार दोपहर करीब 3:30 बजे हुआ।
रींगस थाना एसआई दीप्ति रानी ने बताया- आरती टांक (35) पुत्री रामस्वरूप टांक मूल रूप से अजमेर की रहने वाली थी। फिलहाल रींगस में वृंदावन धर्मशाला में रहती थी। रींगस के खाटूश्यामजी मोड़ पर बाबा श्याम के ध्वज की पूजा-अर्चना करके पदयात्रा पर जा रही थी।
रींगस से 6 किलोमीटर दूर लाखनी टोल प्लाजा से 600 मीटर आगे निकलते ही रींगस की ओर से आ रही स्विफ्ट कार ने टक्कर मार दी। आरती उछलकर 20 फीट दूर गिरी। जबकि कार पेड़ से टकरा गई। कार में कुल चार लोग सवार थे, जिसमें एक महिला भी थी। हादसे के बाद चारों भाग गए। मौके पर मौजूद लोगों ने युवती को हॉस्पिटल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। गुरुवार को पोस्टमॉर्टम करवा कर शव परिजन को सौंप दिया।
पुलिस ने बताया- आरती के पिता रामस्वरूप टांक जिला एवं सेशन न्यायालय, अजमेर में यूडीसी पद से 8 साल पहले रिटायर हुए थे। वे लेखक भी हैं। मां निर्मला देवी गृहिणी हैं। बड़ी बहन अलका टांक की शादी रींगस में हुई है। वह निजी स्कूल में टीचर है। आरती के तीन भाई हैं, जो प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं।

2009 में परिवार के साथ आई थी खाटूश्याम मंदिर
अजमेर की रहने वाली आरती साल 2009 में परिवार के साथ दर्शन के लिए खाटूश्यामजी आई थीं। उसके बाद आरती का खाटूश्यामजी आना शुरू हो गया। साल 2013 में वह घर-परिवार और नौकरी छोड़कर बाबा श्याम की सेवा में लग गईं।रोजाना रींगस से खाटूश्याम मंदिर तक 17 किलोमीटर की पदयात्रा कर बाबा को ध्वजा चढ़ाती थीं। वह नियमित रूप से रोजाना एक से तीन तक पदयात्रा करती थीं। वह कभी 21 तो कभी 51 ध्वजा लेकर पदयात्रा में नाचते-गाते चलती थीं। रास्ते में लोग भी आरती के साथ चल पड़ते थे। बाबा खाटूश्यामजी की आराधना करने के लिए 70 किलो वजन उठाकर पैदल चलती थीं।

2013 में लिया था ध्वजा चढ़ाने का संकल्प
आरती की बड़ी बहन अल्का ने बताया- आरती ने एमए पास करने के बाद जयपुर के एक निजी हॉस्पिटल में काम किया था। 2013 में आरती को बाबा श्याम की ऐसी लगन लगी कि परिवार को छोड़कर खाटू नगरी में बस गई थी। साल 2013 में देवउठनी एकादशी पर आरती ने 2100 झंडे चढ़ाने का संकल्प लिया था। हर साल देवउठनी एकादशी पर श्याब बाबा के जन्मदिन पर आरती झंडे चढ़ाने का संकल्प लेती थी।
साल 2023 में आरती ने 6100 झंडे चढ़ाने का संकल्प लिया था। 11 साल में वह बाबा श्याम को अब तक 25000 निशान चढ़ा चुकी थीं। आरती की श्रद्धा को देखते हुए स्थानीय बस ड्राइवर बीते 10 साल से उन्हें लौटते समय निशुल्क यातायात सुविधा उपलब्ध करवा रहे थे।

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