कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे जबरदस्त तौर पर कांग्रेस के पक्ष में आये हैं। बीजेपी की शर्मनाक हार हुई है। वास्तव में ये शर्मनाक हार किसी एक पार्टी की कम, “किसी एक व्यक्ति” की ज़्यादा है।
दक्षिण भारत से बीजेपी को धक्के मार कर बाहर निकाल दिया गया है। अब उसका वहां दोबारा घुस पाना लगभग असंभव है।
इसके लिए कर्नाटक की जनता का हार्दिक आभार।
लेकिन बीजेपी-कांग्रेस, कांग्रेस-बीजेपी, के इस खेल में देश के बहुजनों की राजनीतिक हैसियत कहाँ तक पहुँच (गिर) चुकी है वो आज के इन नतीजों में साफ है। मायावती की “शोषण-इंजीनियरिंग” बीएसपी को कर्नाटक में0.31% वोट तक पहुंचा चुकी है।
एक उदाहरण काफी है इसे समझने के लिए।
सन 1996 में, जब कांशीराम साहब बीएसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे उस समय कर्नाटक की “बीदर” विधानसभा से बीएसपी के उम्मीदवार ज़ुल्फ़िक़ार हाशमी अपने बलबूते (बिना किसी गठबंधन) चुनाव जीत कर विधायक बने थे। बहुत ईमानदार व्यक्ति और ओजस्वी वक्ता थे। बाद में उन्हें ‘अनुशासनहीनता’ के आरोप में पार्टी से निकाल बाहर कर दिया गया। आजकल शायद कांग्रेस में हैं।
उस दौर में बीएसपी का वोट भी लगभग 2.5% पहुंच चुका था।
आज उसी “बीदर” सीट से मायावती की ‘शोषण- इंजिनीयरिंग’ के फलस्वरूप बीएसपी के उम्मीदवार को 408 वोट मिले हैं। बाकी की अन्य विधानसभाओं में भी वोट का आंकड़ा बस इसी के इर्द-गिर्द घूम रहा है।
बीजेपी की बर्बादी (और कांग्रेस की “खाना आबादी”) पर जश्न मनाने वाले तमाम ‘अम्बेडकरवादियों’ (विशेषकर ‘परिजन हिताय- परिजन सुखाय’ छाप) को कांग्रेसी लड्डुओं को खाने-पचाने के बाद थोड़ा ही सही, खुद अपनी “बर्बादी” पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
प्रमोद कुरील : पूर्व सांसद- राज्य सभा
राष्ट्रीय अध्यक्ष: बहुजन नैशनल पार्टी (BNP)
13-05-2023
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