+ ये कैसी व्यवस्थाएं और कैसे व्यवस्थाकार ॽ
+ अशोक शर्मा + 7726800355
न वो उत्साह दिखा न उमंग दिखी,
वोटिंग इस बार बुझी-बुझी सी थी।
राजस्थान में लोकतंत्र के लिए लोक-सभा चुनाव के मतदान का दूसरा चरण पूरा हो गया। इस पूरे लोकतंत्र पर्व पर 1.35 लाख करोड़ रुपए खर्च का अनुमान लगाया गया है लेकिन राजस्थान में न केवल मतदान आशानुकूल रहा बल्कि इसमें सिस्टेमेटिक व्यवस्था धेला भर नजर नहीं आई। पता नहीं इन्हें कोई गाइड करने वाला नहीं या लकीर के फकीर की तरह काम करने की आदत ही बनी हुई है। बारां के छीपा-बड़ौदा में एक वोट पड़ा जबकि नसीराबाद के बलवंता में दो वोट पड़े। ऐसा क्यों हुआ इसकी वजह यह है कि इस बार मतदाता केन्द्र सरकार से भरपूर नाराज़ है। उसने उम्मीदवारों को तवज्जोह भी नहीं दी। मतदान करने आए लेकिन खानापूर्ति कर चले गए। इस बार उनमें वह उत्साह भी नज़र नहीं आया जो विगत चुनाव में दिखाई दिया था।
- मतदान के दौरान कई जगह बड़ी बेवकूफी भरी व्यवस्थाएं थीं।मतदान करने वाले युवा और बुजुर्ग सभी के लिए एक ही क्यू लगी हुई थी जबकि सरकार द्वारा जारी मतदान परिपत्र में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि सीनियर सिटीजंस के लिए अलग से व्यवस्था की गई है जबकि ऐसा कुछ नहीं था। 60-65 साल से उपर के लोग मतदान केंद्र पर गिर-पड़ रहे थे। जिस क्यू में जवान खडे थे उसी में बुजुर्ग भी खड़े थे। कई सेंटरों पर परिपत्र में उल्लेखित निर्देश पर गुस्से में ध्यान दिलाया गया तब भी कोई सुधार नहीं हुआ। फिर जब कुछ बुजुर्ग उखड़ गए तब जाकर सीनियर सिटीजंस के लिए अलग से व्यवस्था की गई। अधिकांश जगहों पर बीमार मतदाता के लिए बैठने की कोई व्यवस्था नहीं थी।
- कुछ जगहों पर आर एस एस की शाखा में जाने वाले कुछ कर्मचारियों ने अपनी शाखा के साथियों को बीच में ले जाकर मतदान कराया जो कि ग़लत है। लेकिन उन्हें न तो सिक्यूरिटी गार्ड ने रोका और न ही मतदान कार्य सम्पन्न कराने वालों ने आपत्ति प्रकट की। इसके अलावा धूप से बचाव के लिए कई जगह टेंट लगाए गए लेकिन वे ऐसे बेवकूफी भरे तरीके से लगाए गए थे कि टेंट की छांव कहीं और धूप वहां आ रही थी जहां जवान-बुजुर्ग सभी खड़े थे। ये टेंट ऐसे लगाए गए जैसे वैवाहिक समारोह में पंगत में बिठा कर खाना खिलाना हो। धूप का डायरेक्शन जिस तरफ़ होना चाहिए वैसा नहीं था। टेंट लगे होने के बावजूद सीनियर सिटीजंस धूप में खड़े रहने को मजबूर थे। क्या व्यवस्थाएं ऐसी होती हैं ॽ मतदान से पहले और मतदान के बाद सीनियर सिटीजंस के बैठने की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। महिलाओं की क्यू में भीड़ कम होने के कारण महिला के पति को आधा-आधा घंटे धूप में खड़े रह कर अपनी पत्नी के लौटने का इंतजार करना पड़ रहा था। न पीने को पानी था और न ही कोई यह बताने वाला कि टायलेट कहां है। पता नही कैसे-कैसे जिला कलेक्टर इस जिममेदारी को मैनेज कर रहे थे जिन्हें कुछ आता-जाता ही नहीं।
- राजस्थान के भीलवाड़ा में एक बूथ पर ही 85 साल के एक बुजुर्ग की मौत हो गई। बाड़मेर जैसलमेर में निर्दलीय प्रत्याशी रवीन्द्र सिंह भाटी के बूथ एजेंट को पुलिस ने धक्के मार कर बूथ स्थल से बाहर निकाल दिया वहीं बाड़मेर के ही तुबंली गांव में पुलिसकर्मियों से मार-पीट की गई। इससे पहले नागौर में हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा के समर्थक आपस में भिड़ गए थे। इस बार राजनीति में ज्योति मिर्धा के पांव सीधे नहीं पड़ रहे हैं।
- छत्तीसगढ़ में बूथ पर मौजूद पुलिसकर्मी ने खुद को गोली मार ली। मतदान के मौजूदा रूझान को देखते हुए राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार करणीदान सिंह राजपूत ने लिखा है कि ऐसा लगता है कि देश की जनता मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहती।
- उधर अरूणाचल प्रदेश में 60 साल से रह रहे चकमा आदिवासियों को न नागरिकता मिली और न ही नौकरी। देश में लोकतंत्र का महापर्व सम्पन्न हो गया। जैसा कि हर पांच साल बाद होता है, इस बार भी हो गया। कुछ दिनों पहले राजस्थान में प्रथम चरण के हुए मतदान में कुछ सिक्ख परिवारों को कृपाण सहित वोट डालने नहीं जाने दिया गया जबकि दूसरी ओर अनेक मुसलमानों को उनकी धार्मिक पहचान टोपी पहने जाने पर किसी ने कोई आपत्ति प्रकट नहीं की। यह कैसा लोकतंत्र।
26 अप्रेल के पंजाब केसरी में एक खबर छपी कि पीएम ने बीजेपी कार्यकर्ताओं में फूंकी जान। क्यों भाई वे क्या मरे हुए थे ॽ और क्या पीएम को इतनी शक्तिशाली मंत्र सिद्धि प्राप्त है ॽ पता नहीं किस स्तर पर उतर आई है पत्रकारिता। कोई कुछ भी कह रहा है, ये लोग वही छाप रहे हैं। किसी भी खबर का विश्लेषण करके प्रकाशित करने की पत्रकारिता की तो जैसे हत्या ही हो गई है। पैन पकड़ लिया बस हो गए पत्रकार।
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