क्या भारत की नई संसद भवन का उद्घाटन राईख फ्यूरहर होने जा रहा है भारत में????
अजमेर,28 मई 2023 भारत की बहुप्रतीक्षित नई संसद भवन का उद्घाटन और उस प र चल रही राजनीति उठापटक ठीक उसी प्रकार से है जैसे जर्मनी में पूर्ण चुनाव जीतने के बाद जर्मनी की पूरी सत्ता को अपने हाथों में केंद्रित करने के लिए बेचैन हो रहे हिटलर ने राइख़ फ़्यूरहर की उपाधि प्राप्त की थी जिससे कि वह सत्ता का सर्वोच्च और शक्तिशाली एकमात्र केंद्र बन गया था भारत की नई संसद भवन के उद्घाटन पर प्रमुख विपक्षी दलों का उक्त कार्यक्रम में शामिल ना होना एवं अलग-अलग तरह की बयान बाजी यह स्पष्ट करती है कि भारत के प्रमुख विपक्षी राजनीतिक दल इस अंदेशे को समझ तो रहे हैं लेकिन खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे।
प्रमुख विपक्षी दलों की यही मांग है कि भारत की नई संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों होना चाहिए लेकिन संघ भाजपा और स्वयं नरेंद्र मोदी यह नहीं चाहते, इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा राजदंड के रूप में सैंगोल को प्राप्त करना यही दर्शा रहा है कि वह अप्रत्यक्ष रूप से सर्वोच्च शक्तिमान और शक्तिशाली अपने को दिखाना चाहते हैं इसीलिए राष्ट्रपति की अनदेखी की जा रही है बहुत संभव है कि राष्ट्रपति को आमंत्रित भी किया जाए लेकिन राष्ट्रपति का प्रोटोकॉल तो यही होता है कि वह कहीं भी जाएं जो मुख्य अतिथि के रूप में ही जा सकते हैं उनकी मौजूदगी में कोई अन्य व्यक्ति अधिकारी पदाधिकारी अथवा नेता उस कार्यक्रम का प्रमुख विशिष्ट आकर्षण का केंद्र नहीं हो सकता है जन्हा स्वयं राष्ट्रपती मौजूद हो ऐसे में राष्ट्रपति का आना शायद संभव नहीं होगा इस कार्यक्रम के माध्यम से तो शायद यही संदेश देने का कार्य किया जा रहा है कि अब भारत में शक्ति सत्ता का सर्व शक्तिशाली केंद्र नरेंद्र मोदी बन चुके हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
राईख फ्यूरहर की उपाधि भी हिटलर ने इसी प्रकार से प्राप्त की थी यदि किसी को कोई भी संशय हो तो वह इतिहास की किताबें उठाकर देख सकता है की जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने संपूर्ण विपक्ष को उसके विरोध को नजरअंदाज करते हुए यह उपाधि प्राप्त की थी जिसके माध्यम से प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की समस्त शक्तियां इस उपाधि के जरिए से प्राप्त हो गई थी और इसके बाद वह पूर्णतया निरंकुश तानाशाह बन गया था क्या भारत में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिलेगा आने वाले समय में,,,, देखना दिलचस्प रहेगा,, ।
नए संसद भवन का उद्घाटन करके एवं राजदंड के रूप में सैंगोल को प्राप्त करके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय जनता पार्टी अपने कैडर को शायद यही संदेश देना चाह रहे हैं कि वह अब पूर्ण रूप से सत्ता पर काबिज हो चुके हैं और लोकतंत्र की तमाम शक्तियां उनके अंदर निहित हो चुकी है जिसका विरोध करने की क्षमता स्वयं राष्ट्रपति, न्यायपालिका, कार्यपालिका ,मीडिया अथवा विपक्षी दलों में नहीं है।
विपक्षी दलों का यह प्रलाप शायद यही दर्शा रहा है कि भारत के संविधान का प्रमुख न्यायपालिका कार्यपालिका का प्रमुख एवं भारत का प्रथम नागरिक होने की दृष्टि से राष्ट्रपति कि मौजूद होते हुए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा नई संसद का उद्घाटन स्वयं को सर्वशक्तिमान और शक्तिशाली दिखाने और दर्शाने के लिए ही किया जा रहा है यदि वह इसमें शामिल होते हैं तो यह माना जाएगा कि शामिल होने वाले दलों ने भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अधीनता स्वीकार कर ली है जो कि शायद वह फिलहाल नहीं दर्शना चाहते हैं।
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