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आखिर क्या गुनाह कर रहे हैं धर्मेंद्र राठौड़ अपने लिए एक कठिन और चुनौतीपूर्ण लक्ष्य तय करके,,,,,,, गिरते हैं मैदान-ए-जंग में शहसवार ही वो तिफन क्या गिरे जो घुटनों के बल चले

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आखिर क्या गुनाह कर रहे हैं धर्मेंद्र राठौड़ अपने लिए एक कठिन और चुनौतीपूर्ण लक्ष्य तय करके,,,,,,, गिरते हैं मैदान-ए-जंग में शहसवार ही वो तिफन क्या गिरे जो घुटनों के बल चले

(विशेष आलेख,)पिछले दिनों राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौर ने अजमेर में अपने स्वयं के लिए एक बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण लक्ष्य तय किया कि वह अजमेर जिले की आठों विधानसभा सीटों पर विजय हासिल करने के पश्चात ही अपना स्वागत, सम्मान, सत्कार करवाएंगे एवं माला साफा तभी पहनेंगे,,,,,, हो सकता है कि उनका यह चुनौतीपूर्ण लक्ष्य तय करने का अंदाज किसी को मुंगेरीलाल के हसीन सपने लगे या कुछ और लेकिन यदि कोई अपनी जांघो पर थाप मारकर चुनौती स्वीकार करता है तो इसमें गुनाह क्या है,बुरा क्या है,, अजमेर में कांग्रेस पार्टी संगठनात्मक रूप से सुस्त अवश्य पड़ी है परंतु कमजोर तो शायद नहीं है और यदि धर्मेंद्र राठौर ने यह कठिन लक्ष्य अपने लिए तय किया है तो कुछ ना कुछ सोच कर ही लिया होगा अजमेर के कांग्रेसियों में जोश, जज्बा ,ज्वाला और उत्साह भरने के लिए धर्मेंद्र राठौर का यह लक्ष्य तय करना क्या कोई इतना बड़ा गुनाह है की उनकी चारों तरफ से मीडिया जगत में आलोचना की जाए।
क्या राजस्थान एवं अजमेर की मीडिया जगत में इस तरह की आलोचनाएं तब देखने और सुनने में नहीं आती जब भारतीय जनता पार्टी लोकसभा की 25 की 25 एवं विधानसभा की 175 सीटें जीतने का दावा करती है तब इस तरह की आलोचनाएं देखने और सुनने में शायद नहीं मिलती इसका क्या मतलब निकाला जा सकता है यह तो समझदार पाठक समझ ही लेगा,, परंतु धर्मेंद्र राठौर के द्वारा तय किया गया लक्ष्य यदि कांग्रेस पार्टी में जान फूक सकता है दम भर सकता है जोश जज्बा और ज्वाला जगा सकता है कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं में तो क्या बुरा है भाई,,
मजा तो तब है जब भारतीय जनता पार्टी की चुनौतियों पर भी कलंबारदरो की कलम का फनफनता हुए फन, फन इसी तरह से फुंफकार मारे एक तरफा एकपक्षीय लिखावट सच नहीं होती,, लेकिन ऐसा नहीं होता धर्मेंद्र राठौर पिछले लंबे समय से अजमेर जिले में घूम घूम कर और विशेषकर पुष्कर और अजमेर उत्तर विधानसभा में घूम घूम कर कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं में जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें जोश दिलाना चाहते हैं अशोक गहलोत की लोक कल्याणकारी योजनाओं के दम पर अगला विधानसभा चुनाव जीतने के लिए तो यह उनकी मेहनत है लग्न है पार्टी के प्रति वफादारी है और यही नहीं धर्मेंद्र राठौर के दरबार में पूरे जिले के ही कांग्रेसी अपनी-अपनी समस्याएं एवं अटके हुए काम ले करके आते हैं जिनका यथोचित समाधान करने का प्रयास धर्मेंद्र राठौर के द्वारा किया जाता है क्योंकि धर्मेंद्र राठौर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का खासम खास माना जाता है ऐसे में यदि एक कठिन लक्ष्य तय करके अपने नेतृत्व करता को नहीं बताया जाएगा तो इसके मायने क्या होंगे और कठिन लक्ष्य दमदार योद्धाओं को ही दिए जाते हैं एवं उन्हीं के द्वारा अपने लक्ष्य तय किए जाते हैं वह कहते हैं ना कि गिरते हैं मैदान-ए-जंग में शहसवार ही वो तिफ्न क्या गिरे जो घुटनों के बल चले,,,, हो सकता है यह आलेख किसी व्यक्ति अथवा विचारधारा से प्रेरित लगे पाठक को परंतु ऐसा नहीं है अपने जीवन में कठिन चुनौती स्वीकार करने वाले योद्धाओं का सम्मान होना चाहिए ना की आलोचनाएं लेखन कला के माहिर योद्धा हो सकता है किसी विचारधारा विशेष के प्रभाव में आकर अथवा प्रभावित होकर अथवा प्रभावित करने के लिए भी शायद ऐसा कर सकते हैं। हो सकता है कुछ लोगों को यह आलेख धर्मेंद्र राठौर अथवा कांग्रेस पार्टी को प्रभावित करने वाला लगे परंतु ऐसा नहीं है,, कोई व्यक्ति अपने जीवन में यदि कठिन तम और कठोरतम लक्ष्य तय करके उसकी प्राप्ति हेतु संघर्ष करता है तो उस व्यक्ति को अप्रिशिएट किया जाना चाहिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ना की उसकी आलोचनाएं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं गृह मंत्री अमित शाह ने भी 2014 में इसी तरह के दावे और वादे किए थे बहुत लोगों को उनके दावों पर यकीन नहीं था कि 10 वर्षों से सत्ता नसी, शक्तिशाली कांग्रेस पार्टी को इस तरह तिनके तिनके बिखेर दिया जाएगा लेकिन तत्कालीन मीडिया जगत और पत्रकारिता जगत में उन्हें आश्चर्यजनक रूप से प्रोत्साहित किया गया इसी का नतीजा है कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी इस देश के ही नहीं वरन दुनिया के शक्तिशाली नेताओं में शुमार हो चुके हैं।
हो सकता है कि धर्मेंद्र राठौर की उठापटक अजमेर जिले में सुस्त और कमजोर पड़ी कांग्रेस पार्टी में कुछ जान सुख पाए परंतु घोर आश्चर्य इस बात का होता है कि धर्मनिरपेक्ष विचारधारा की पक्षधर पार्टी कांग्रेस के नेता धर्मेंद्र राठौर के पक्ष में अभी तक किसी भी धर्मनिरपेक्षता वादी की कलम का पहला नहीं खुला जबकि प्रतिद्वंदी विचारधारा विशेष के लिए लोग जी जान लगा देते हैं और प्रत्यक्ष पार्टी बनकर मुकाबला करने पर भी उतारू हो जाते हैं।

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