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विपक्षी एकता के लिए पटना में हुई बैठक का सबसे महत्वपूर्ण शहर रविंद्र वाजपेई की कलम से

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केजरीवाल की मजबूरी का फायदा उठाना चाह रही कांग्रेस

पटना में आयोजित विपक्ष की बैठक संपन्न हो गई। 15 दलों ने एक साथ मिलकर भाजपा को हराने की कसम खाई । ममता बैनर्जी यहां तक कह गईं कि इसके लिए खून बहाना पड़े तो भी बहाएंगे। शरद पवार , सुप्रिया सुले , मल्लिकार्जुन खरगे , राहुल गांधी , उद्धव ठाकरे , आदित्य ठाकरे , स्टालिन अखिलेश यादव , हेमंत सोरेन , फारुख अब्दुल्ला , मेहबूबा मुफ्ती , लालू प्रसाद यादव , तेजस्वी , अरविंद केजरीवाल और भगवंत सिंह मान आदि तमाम नेता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आमंत्रण पर उक्त बैठक में शामिल हुए किंतु उड़ीसा , तेलंगाना और आंध्र के मुख्यमंत्री क्रमशः नवीन पटनायक , के.सी.राव और जगन मोहन रेड्डी के अलावा तेलुगु देशम के चंद्रबाबू नायडू , बसपा प्रमुख मायावती , अकाली दल के सुखबीर बादल , लोकदल के जयंत चौधरी आदि की गैर मौजूदगी भी उल्लेखनीय रही। असदुद्दीन ओवैसी को भी बुलाया ही नहीं गया।

बैठक में एक बात पर तो सहमति बनी कि भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में रोकने सभी एकजुट होकर संयुक्त प्रत्याशी खड़ा करें किंतु किसे कितनी सीटें दी जायेंगी इस पर फैसला आगामी बैठकों के लिए टाल दिया गया । आगामी माह 12 तारीख को शिमला में दोबारा उक्त नेता मिलकर आगे की रणनीति बनाएंगे। बैठक में मतभेद भी उभरे और कहा सुनी भी हुई। दिल्ली अध्यादेश के मुद्दे पर राज्यसभा में मोदी सरकार के विरोध पर श्री केजरीवाल को दर्जन भर विपक्षी दलों के समर्थन का आश्वासन मिलने के बावजूद कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले। इसीलिए आम आदमी पार्टी ने बैठक के पूर्व ही दबाव बना दिया था कि पहले इस विषय पर फैसला हो।

लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष श्री खरगे ने ये कहते हुए श्री केजरीवाल को रोका कि ये विषय बैठक की विचार सूची नहीं होने से इस पर विमर्श उचित नहीं है और संसद का विषय होने से इस पर बाद में विचार किया जावेगा। डॉ.अब्दुल्ला ने भी श्री केजरीवाल पर तंज कसा कि उनकी पार्टी ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के प्रस्ताव का संसद में समर्थन कर विपक्ष की आम राय के विरोध का दुस्साहस किया था। कुछ और नेताओं ने भी श्री केजरीवाल को ज़िद न करने की सलाह दी।

इसका असर ये हुआ कि आम आदमी पार्टी के सभी नेता बैठक की समाप्ति के बाद एकता का प्रदर्शन करने आयोजित की गई पत्रकार वार्ता में शामिल हुए बिना लौट गए। साथ ही श्री केजरीवाल का ये बयान भी आ गया कि जब तक अध्यादेश के विरोध का फैसला नहीं होता वे कांग्रेस के साथ किसी भी अगली बैठक में शिरकत नहीं करेंगे।

हालांकि इस संबंध में एक बात गौरतलब है कि जिन दलों ने आम आदमी पार्टी के अनुरोध पर उक्त अध्यादेश का राज्यसभा में विरोध करने का आश्वासन दिया है वे भी पटना बैठक में श्री केजरीवाल के पक्ष में नहीं बोले जिससे वे अलग – थलग पड़ गए। इस तरह कांग्रेस इस बारे में सफल रही क्योंकि आम आदमी पार्टी से सबसे ज्यादा खतरा फिलहाल उसे ही नजर आ रहा है। उसकी ये सोच है कि इस मुद्दे पर श्री केजरीवाल को झुकाया जा सकता है जो राजस्थान , म.प्र और छत्तीसगढ़ में जोर – शोर से आम आदमी पार्टी को चुनाव लड़वाने जा रहे हैं। पटना बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष श्री खरगे ने आम आदमी पार्टी के नेताओं द्वारा हाल ही में दिए कांग्रेस विरोधी बयानों का उल्लेख भी किया ।

इसके कारण श्री केजरीवाल को असहज स्थिति का सामना करना पड़ गया जो ये उम्मीद लेकर पटना पहुंचे थे कि उनके दबाव के सामने कांग्रेस झुक जायेगी किंतु उल्टे उनको ही अपनी आलोचना सुनना पड़ी। पटना से खाली हाथ लौटने के बाद आम आदमी पार्टी क्या करती है इस पर सभी की निगाहें लगी रहेंगी क्योंकि उसके लिए 2024 के लोकसभा चुनाव से ज्यादा महत्वपूर्ण उस अध्यादेश को कानून बनने से रोकना है जिसके कारण सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी केजरीवाल सरकार के हाथ से अधिकारियों के तबादले और पोस्टिंग के अधिकार छिन गए।

पार्टी इस बात को लेकर चिंतित है कि यदि संसद में भी उक्त अध्यादेश को मंजूरी मिल गई तब दिल्ली सरकार की स्थिति सर्कस के शेर जैसी होकर रह जायेगी। कांग्रेस भी इस मुद्दे पर बेहद सतर्क है क्योंकि 2014 में भाजपा को रोकने के लिए दिल्ली में श्री केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनवाने हेतु समर्थन देने का खामियाजा वह आज तक भुगत रही है। इसलिए वह इस बार जल्दबाजी से बचने की नीति पर चल रही है। उसे ये समझ में आ गया है कि इस मुद्दे पर वह आम आदमी पार्टी को झुकने मजबूर कर सकती है जो उसका विरोध करने का कोई भी अवसर नहीं गंवाती।

राजस्थान के हालिया दौरे में श्री केजरीवाल ने जिस आक्रामक शैली में गहलोत सरकार और कांग्रेस पर हमले किए उनसे पार्टी काफी नाराज है जिसका संकेत श्री खरगे ने उक्त बैठक में श्री केजरीवाल को दिया भी। दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी सरकार के मंत्रियों द्वारा पत्रकार वार्ता में कांग्रेस पर लगाए आरोपों से भी वह खफा है। और यही वजह है कि श्री खरगे और श्री गांधी द्वारा अब तक श्री केजरीवाल को मुलाकात का समय नहीं दिया गया। ये लड़ाई कहां तक पहुंचेगी , कहना कठिन है क्योंकि दोनों पक्ष एक दूसरे की मजबूरी का लाभ लेना चाहते हैं। कांग्रेस की दूरगामी नीति आम आदमी पार्टी को भाजपा की बी टीम प्रचारित करने की है।

ऐसे में श्री केजरीवाल द्वारा लोकतंत्र पर खतरे का जो भावनात्मक कार्ड चला गया है , उससे प्रभावित होने की बजाय कांग्रेस अपने पत्ते विशुद्ध व्यवहारिक तरीके से चल रही है। ये कहना भी गलत न होगा कि अध्यादेश के मुद्दे पर श्री केजरीवाल की नस उसने दबा रखी है। इस मुकाबले में कौन जीतेगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा किंतु इसका असर विपक्षी एकता के प्रयासों पर भी पड़ सकता है क्योंकि आम आदमी पार्टी खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे वाली स्थिति में तो आ ही गई है ।

  • रवीन्द्र वाजपेयी

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