यदि ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर आने वाले मुसलमानों के लिए भी ऐसा ही कोई फतवा किसी मौलाना की तरफ से जारी कर दिया गया जैसा उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ियों के लिए किया है ,,,तब अजमेर के हजारों हिंदू परिवारों का क्या होगा,,,,,,
आजकल सियासी गलियारों में उत्तर प्रदेश सरकार के उस फरमान की जबरदस्त चर्चाएं चल रही हैं जो की मुजफ्फरनगर के मुसलमान के लिए अपनी-अपनी दुकानों, फल सब्जी, के ठेलो एवं भोजनालय ढाबों पर अपना नाम लिखने के लिए कहा है,,, ताकि हिंदू कावड़ियों का धर्म भ्रष्ट न हो सके और वह किसी मुसलमान की दुकान ठेले अथवा ढाबे से कोई चीज वस्तु विक्रय ना कर सके यानी एक तरह से मुस्लिम समाज का बायकाट करने का यह फरमान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी किया गया है यह किस मंशा और विचार को अग्रेषित करने के लिए किया है शायद कोई इसकी गहराई में पहुंचने का प्रयास नहीं करेगा।
लेकिन यदि अजमेर की विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर आने वाले मुसलमान के लिए भी ऐसा ही कोई फरमान किसी मौलाना के द्वारा जारी कर दिया गया कि वे भी किसी हिंदू के भोजनालय पर खाना ना खाएं अथवा नेम प्लेट देखकर के ही अपने व्यवहार को अग्रेषित करें तो अजमेर के हजारों हिंदू परिवारों का क्या होगा,,, क्योंकि अजमेर की दरगाह और इसके आसपास के क्षेत्र में लगभग जो भी व्यापार दरगाह पर आने वाले जायरीनों के द्वारा किया जाता है उसका 80% तक संचालन हिंदुओं के ही हाथ में है चाहे वह फल सब्जी की दुकान हो, बर्तन खिलौने कपड़ों और सोहन हलवे की दुकान हो ,फूलों की सप्लाई हो, चादर की सप्लाई हो, टोपिया का व्यापार हो, अथवा होटल, गेस्ट हाउस का व्यापार हो ,या फिर आने वाले जायरीन जो की अजमेर के आसपास के क्षेत्र में घूमने भ्रमण करने एवं पर्यटन के लिए जाते हैं,, जैसे पुष्कर, सरवाड़ और सांभर नरेना आदि क्षेत्र में जाते हैं वहां पर आने-जाने के लिए जो साधन टैक्सिया और चौपाइयां वाहन इस्तेमाल करते हैं उनमें भी 80% तक हिंदुओं का ही व्यापार फलता फूलता है एक अनुमान के मुताबिक प्रति माह लगभग तीन से पांच लाख जरीन दरगाह की जियारत के लिए आते हैं जो की हर महीने करोड़ों रुपया खर्च कर अजमेर के हजारों हिंदू परिवारों के पालन पोषण में सहायक होते हैं,, और यह पूरा सालाना कारोबार लगभग 2000 करोड रुपए से ज्यादा का होता है जिसके 80 से 85% व्यापार पर हिंदुओं का ही कब्जा है होटल, गेस्ट हाउस बर्तन खिलौने कपड़ों की दुकान भोजनालय, मिठाई, सोहन हलवा, धूप बत्ती, लोबान की दुकान या अन्य किसी भी प्रकार के बेचन की वस्तुओं का जो भी व्यापार अजमेर शरीफ की दरगाह और इसके आसपास के क्षेत्र में होता है इससे लगभग 10 से 15000 हिंदू परिवारों को इससे रोजगार मिलता है ऐसे में यदि मुसलमान ने भी ऐसे ही किसी फतवे को अंगीकार करने का विचार किया तो अजमेर शरीफ की दरगाह के माध्यम से पलने वाले हजारों हिंदू परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट जबरदस्त रूप से खड़ा हो जाएगा।
आखिर यह कौन सी मानसिकता और विचारधारा पनप रही है भारत में जो की भारत के चेहरे को बदल डालना चाहती है। यदि इसी तरह से हिंदुओं के द्वारा मुसलमानों का बायकाट और मुसलमानों के द्वारा हिंदुओं का बायकाट किए जाने की परंपरा भारत में आरंभ हो गई तो फिर इस देश के टुकड़े-टुकड़े होने से कोई नहीं रोक पाएगा।
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