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लगातार आन्दोलन का असर है कि राजनेता, मान्यता प्राप्त संगठन, अखबार, चैनल सब पुरानी पेंशन के लिए बोलने के लिए मजबूर हैं- उम्मेद सिंह चौहान

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यह 2012 से लगातार आन्दोलन का असर है कि राजनेता, मान्यता प्राप्त संगठन, अखबार, चैनल सब पुरानी पेंशन के लिए बोलने के लिए मजबूर हैं- उम्मेद सिंह चौहान

2012 तक NPS किसी भी मान्यता प्राप्त संगठन के पोस्टर या मांगपत्र में मुद्दा नहीं था। 2012 में भारतीय रेल में Indian Railway Employees Federation (IREF)का गठन हुआ। जिसमें NPS के लिए कुछ साथीयों ने अध्ययन किया और NPS के खिलाफ पहला पर्चा प्रचार के लिए निकाला और सरदार अमरीक सिंह के नेतृत्व में NPS के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने लगे। 2014 तक कुछ साथीयों की मृत्यु हुई तो इसके परिणाम दिखने लगे जो कि बहुत ही चिंताजनक थे।
2016 में गाजियाबाद में 9 जोनल रेलवे और चार उत्पादन इकाई के साथीयों की बैठक से NPS संघर्ष तेज करने के लिए Front Against NPS In Railway का गठन किया। जिसमें सभी पदाधिकारी केवल nps वाले ही थे। फिर सभी जोन में NPS के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने लगे जिसमें टैम्पल बांटना, छोटी मीटिंग करना, नुक्कड़ सभाएं करना इन सब के माध्यम से जागरूक किया जाने लगा। उसके बाद जगह जगह सैमीनार आयोजित किए गए। NPS विरोध में कार्यक्रम रैली, धरने , काला दिवस शुरू किया। उसी दौरान विभिन्न राज्यों में भी NPS के खिलाफ आवाज उठाने लगी। दिल्ली में सभी राज्य व केन्द्र सरकार के कर्मचारी संगठनों ने मिलकर National Movement For Old Pention Scheme का गठन किया। रेलवे की ओर से अमरीक सिंह इसमें Front Against NPS In Railway के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इसमें प्रतिनिधित्व किया। जिससे आन्दोलन जो राज्यों में और केन्द्र सरकार के संगठन अलग-अलग चल रहा था एक बड़े क्रान्तिकारी आन्दोलन के रूप में खड़ा हुआ। इसके बाद आन्दोलन लगातार बढ़ता जा रहा है। 2018 में रामलीला मैदान दिल्ली में महारैली का आयोजन किया ‌ जंतर-मंतर पर पांच दिन तक घरना दिया। हर राज्य में सभी संगठन मिलाकर आंदोलन को तेज करने में लगे हुए हैं।
आज इसी आन्दोलन का परिणाम है कि पांच राज्यों में पुरानी पेंशन लागू है और सभी राजनैतिक दल, अखबार, न्यूज़ चैनल सभी इस विषय में चर्चा कर रहे हैं। चुनाव में भी NPS खत्म कर पुरानी पेंशन लागू करना प्रमुख मुद्दा रहा है और इस मुद्दे ने कई राज्यों में सत्ता परिवर्तन भी किया है। उम्मीद है 2024 लोकसभा चुनाव से पहले सभी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल हो जाएगी। अगर नहीं होती है तो बहुत बड़ा राजनीतिक परिवर्तन देखने को मिलेगा।

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