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जानिए- छोटे जिलों का कॉन्सेप्ट कैसे बनेगा विकास का नया मॉडल; कितना होगा क्राइम कंट्रोल? क्या होगा प्रशासनिक तंत्र

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राजस्थान की जनता को नए जिलों से क्या फायदा?:जानिए- छोटे जिलों का कॉन्सेप्ट कैसे बनेगा विकास का नया मॉडल; कितना होगा क्राइम कंट्रोल?

जयपुर मुख्यमंत्री गहलोत जब शुक्रवार को जब विधानसभा पहुंचे, तो इस बात का अंदाज लगाना भी मुश्किल था कि नए जिलों की घोषणा भी हो सकती है। कारण यह कि नए जिलों के लिए बनी रामलुभाया कमेटी का कार्यकाल बढ़ाने के बाद ये मामला ठंडे बस्ते में जाता दिख रहा था, लेकिन मुख्यमंत्री ने सबको चौंकाया। पांच या सात नहीं, बल्कि 19 जिलों की घोषणा कर दी।

भले ही इस घोषणा को पॉलिटिकल फायदे से जोड़कर देखा जा रहा हो, लेकिन जितनी जल्दी नए जिले गठित होंगे, उतनी ही जल्द जनता को सुविधाएं नजदीक ही मिलने लगेंगी। फिर भी राजनीतिक फायदे के साथ कई प्रशासनिक चुनौतियां भी झेलनी पड़ेंगी।

नए जिलों की घोषणा के बाद चुनौतियों और आमजन के लिए फायदों को लेकर एक्सपर्ट की मदद से एनालिसिस किया। साथ ही आमजन के मन में उठ रहे सवालों का जवाब लेने की कोशिश भी की…

सवाल नंबर-1 : जनता को नए जिलों से क्या फायदा होगा? बड़े जिलों में जनता के सामने क्या चुनौतियां रहती हैं?

सवाल नंबर 2 प्रदेश को क्या और कैसे फायदा मिलेगा?
सवाल नंबर 3 राज्य सरकार ने घोषणा तो कर दी, लेकिन आखिर सरकार के सामने क्या क्या चुनौतियां आने वाली हैं?

इन सवालों को लेकर हमने आर्थिक एवं प्रशासनिक एक्सपर्ट प्रो.एसएस सोमरा, समाजिक एक्सपर्ट्स डॉ. रुचिका शर्मा सहित कुछ अन्य से बातचीत की। इस रिपोर्ट में हम आपको एक्सपर्ट्स की ओर से दिए जवाबों के अनुसार जानकारी देंगे।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से नए जिलों की घोषणा के बाद सत्ता पक्ष के विधायक काफी खुश नजर आए। सदन में बजट रिप्लाई के बाद गहलोत के समर्थन में नारे लगाते कांग्रेस विधायक।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से नए जिलों की घोषणा के बाद सत्ता पक्ष के विधायक काफी खुश नजर आए। सदन में बजट रिप्लाई के बाद गहलोत के समर्थन में नारे लगाते कांग्रेस विधायक।
पहले बात करते हैं कि बड़े जिलों में जनता के सामने क्या चुनौतियां रहती हैं और छोटे जिलों में जनता को क्या सीधा फायदा मिलेगा। वहीं, प्रदेश के विकास में नए जिले कैसे योगदान देंगे…

40 साल में राजस्थान की आबादी डबल, लेकिन….
एक अनुमान के मुताबिक राजस्थान की आबादी 8 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। पिछले 30 सालों की बात करें, तो आबादी दोगुनी हुई, लेकिन जिले केवल 7 ही बढ़े हैं। वर्ष 1981 तक राजस्थान में 26 जिले थे, तब राजस्थान की जनसंख्या करीब 3.6 करोड़ थी। आज के समय में आबादी 8 करोड़ से भी ज्यादा है, लेकिन जिले 33 ही बन पाए। जिलों की संख्या आबादी की तरह दोगुनी नहीं हुई।

वर्ष 2008 में प्रतापगढ़ के बाद से राज्य में कोई नया जिला नहीं बन पाया। सबसे बड़ी मुसीबत है जिलों में बैठे अफसरों का सभी जगह समान फोकस नहीं हो पाता है। गुड गवर्नेंस देने में परेशानी आती है और ग्रामीण जनता दूरियों के चलते परेशान हो जाती है। आम जनता तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचने में हो रही देरी से सरकार पर भी दबाव बढ़ा है।

गुड गवर्नेंस और फास्ट सर्विस डिलीवरी
एक्सपर्ट मानते हैं कि गुड गवर्नेंस और फास्ट सर्विस डिलीवरी देनी है तो यह छोटे जिलों से ही संभव है। जिले बड़े दायरे में होते हैं तो जिला मुख्यालय आने-जाने के लिए ही जनता को 250-300 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। छोटे जिले होते हैं तो प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर निगरानी बनी रहती है। दूर-दराज गांवों तक के लोगों को जिला मुख्यालय पर बैठे अफसरों तक पहुंचने में आसानी रहती है।

एक्सपर्ट्स के अनुसार छोटे जिले का सीधा सा मतलब है विकास तेजी से जन-जन तक पहुंचेगा। जिलों का आकार जितना छोटा होगा, प्लानिंग उतनी ही सक्सेस होगी। गांव, पंचायत, ब्लॉक और जिला मुख्यालय का सीधा संवाद होगा। विकास की रफ्तार तेज, कानून और व्यवस्था बेहतर, कनेक्टिविटी बढ़ेगी, सर्विस डिलीवरी फास्ट, सरकारी योजनाओं को आम लोगों तक ज्यादा आसानी से पहुंचाया जा सकेगा, राजस्व बढ़ेगा आदि।

जिलों की घोषणाओं के बाद मुख्यमंत्री का स्टेटमेंट : इस बजट में मैंने प्रदेशवासियों की भावनाओं के अनुरूप निर्णय किए हैं। मुझे खुशी है कि पूरे प्रदेश की आकांक्षाएं बजट से पूरी हुई हैं। PCC द्वारा अधिवेशन में दिए प्रस्तावों को भी इस बजट में शामिल किया गया है। राजस्थान की जनता के लिए बचत, राहत और बढ़त का सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा।
जिलों की घोषणाओं के बाद मुख्यमंत्री का स्टेटमेंट : इस बजट में मैंने प्रदेशवासियों की भावनाओं के अनुरूप निर्णय किए हैं। मुझे खुशी है कि पूरे प्रदेश की आकांक्षाएं बजट से पूरी हुई हैं। PCC द्वारा अधिवेशन में दिए प्रस्तावों को भी इस बजट में शामिल किया गया है। राजस्थान की जनता के लिए बचत, राहत और बढ़त का सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा।
ये सभी फायदे जनता से सीधे जुड़े हुए हैं। जैसे ही जिला मुख्यालय से गांवों और कस्बों की दूरियां घटेंगी, वैसे ही प्रशासन और नागरिकों के बीच संवाद बढ़ेगा और फासले मिटेंगे। कलेक्टर, एसडीओ सहित सरकारी मशीनरी की रफ्तार भी तेज होगी। सभी की मुख्यालयों तक पहुंच, सड़क, पानी, बिजली, सफाई जैसी मूलभूत सुविधाओं में सुधार होगा।

जिले छोटे होंगे तो प्रदेश के प्रशासन पर संसाधनों पर बोझ घटेगा। औद्योगिक विकास तेज होगा। अब जिला छोटा होता है, सभी जगह पर फोकस करना आसान हो जाता है। जिला यूनिट बनता है तो बजट बढ़ता है। मैनपावर बढ़ती है, हालात बदलते हैं।

19 जगहों पर IPS बैठेंगे तो होगा क्राइम कंट्रोल
महिला अपराध से लेकर कई अपराधों में राजस्थान सुर्खियों में रहता है। नए जिलों के गठन से उन जगहों पर IPS अधिकारियों की तैनाती से क्राइम कंट्रोल करने में मदद मिलेगी। पुलिस फोर्स भी बढ़ेगा, जिले में आने वाली जेलों का सुपरविजन बढ़ेगा। ट्रैफिक पुलिस के आने से ट्रैफिक कंट्रोल होगा। IPS के साथ-साथ RPS जैसी राजस्थान सेवा के अफसर जिम्मा संभालेंगे तो की तरह के सुधार होंगे।

आखिर सरकार के सामने क्या क्या चुनौतियां आने वाली हैं?
देश में क्षेत्रफल के हिसाब से राजस्थान पहला और आबादी के हिसाब से सातवां सबसे बड़ा राज्य है। यहां जिलों के बीच दूरी ज्यादा है। भौगोलिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि दूर-दराज के इलाकों में प्रशासनिक तंत्र को चलाना बहुत मुश्किल है। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे तक यह मुद्दा कई बार केन्द्र के सामने उठा चुके हैं।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बजट रिप्लाई के दौरान 19 जिलों की घोषणा करते हुए। इस दौरान उन्होंने नए जिलों के नाम पढ़ते समय विपक्ष की ओर इशारा करते हुए चुटकी भी ली। उन्होंने कहा कि ये घोषणा सभी के लिए है, सभी टेबल थपथपाएं।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बजट रिप्लाई के दौरान 19 जिलों की घोषणा करते हुए। इस दौरान उन्होंने नए जिलों के नाम पढ़ते समय विपक्ष की ओर इशारा करते हुए चुटकी भी ली। उन्होंने कहा कि ये घोषणा सभी के लिए है, सभी टेबल थपथपाएं।
नए जिलों को बनाने में राजस्थान सरकार के सामने ये चुनौतियां आएंगी…

आर्थिक बोझ : सरकार व जनता का फायदा देखते हुए खास नहीं
एक्सपर्ट्स के अनुसार राज्य सरकार को नुकसान सिर्फ आर्थिक बोझ का है। हालांकि राज्य सरकार को नया जिला बनाने पर आर्थिक खर्च एक बार ही करना होगा। प्रशासनिक एक्सपर्ट्स के अनुसार एक बार खर्चा होगा, लेकिन सरकार और जनता को बड़ा फायदा होगा। अफसरों की सैलरी, ऑफिस एस्टेबलिशमेंट, गाड़ियां आदि खर्चा आदि को मोटे रूप से देखें तो 50 लाख रुपए प्रति जिला वन टाइम कॉस्ट आ सकती है। इसके बाद ये कॉस्ट रनिंग में आ जाती है। लेकिन सरकार के लिए जो रेवेन्यू मॉडल बनेगा, उसके हिसाब से ये खर्चा कुछ भी नहीं है। फिर भी कलेक्ट्रेट भवन, पुलिस लाइन, कोषालय आदि के लिए जमीन अलॉटमेंट और भवन निर्माण में अच्छा खासा फंड लगेगा। इसीलिए दो हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।

सबसे बड़ी चुनौती : अफसरों की कमी
ये सबसे बड़ा मुद्दा है। क्षेत्रफल के हिसाब से देखा जाए तो जहां अन्य राज्यों में एक आईएएस को लगभग 200 से 215 वर्ग किलोमीटर का इलाका संभालना होता है, वहीं राजस्थान में एक आईएएस अफसर के जिम्मे अन्य राज्यों से करीब 5 गुना ज्यादा 1090 वर्ग किलोमीटर इलाका होता है। ऐसे में प्रशासनिक मशीनरी कितनी भी योग्य हो, वो काम प्रभावित करती है।

राजस्थान में क्षेत्रफल और आबादी के हिसाब से लगभग 365 आईएएस अफसरों का काडर निर्धारित होना चाहिए। राजस्थान काडर में अभी करीब 100 और आईएएस की जरूरत है। राजस्थान काडर में आईएएस के 313 पद स्वीकृत हैं। इनके एवज में अभी करीब 248 अफसर ही काम कर रहे हैं।

हरियाणा में महज एक करोड़ लोगों पर 77 आईएएस के पद आवंटित हैं। पंजाब में भी 77 पद आवंटित हैं। मध्यप्रदेश में 52 और तमिलनाड़ू में 49, छत्तीसगढ़ में 60 जबकि राजस्थान में केवल 39 पद आवंटित हैं। इसी तरह देश के जिन तीन राज्यों में तय काडर से 100 पदों से ज्यादा की कमी है, उनमें राजस्थान तीसरे स्थान पर है। उत्तर प्रदेश में 208, बिहार में 123 और राजस्थान में 109 अफसरों की कमी मानी जाती है।

भास्कर एक्सपर्ट्स : डॉ रुचिका शर्मा (समाजशास्त्री), प्रो. एसएस सोमरा (प्रशासनिक एवं आर्थिक मामलों के एक्सपर्ट)
भास्कर एक्सपर्ट्स : डॉ रुचिका शर्मा (समाजशास्त्री), प्रो. एसएस सोमरा (प्रशासनिक एवं आर्थिक मामलों के एक्सपर्ट)
राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप में 1 नवंबर 1956 को आया। उस समय राजस्थान में कुल 26 जिले थे।
27 वां जिला – धौलपुर – 15 अप्रैल, 1982
28 वां जिला – बारां – 10 अप्रैल, 1991
29 वां जिला – दौसा – 10 अप्रैल,1991
30 वां जिला – राजसमंद – 10 अप्रैल, 1991
31 वां जिला – हनुमानगढ़ – 12 जुलाई, 1994
32 वां जिला – करौली – 19 जुलाई, 1997
33 वां जिला – प्रतापगढ़ – 26 जनवरी, 2008

गहलोत ने क्यों लिया सबसे बड़ा राजनीतिक खतरा:जहां पार्टी कमजोर, वहां भी नए जिले, 2023 में CM फेस को लेकर संकेत साफ?

राजस्थान में शुक्रवार शाम को आंधी और बारिश के साथ ‘सियासी मौसम’ भी बदल गया। एक साथ 19 जिलों की घोषणा ने प्रदेश में सियासी तूफान ला दिया। हर किसी का सवाल था, क्या ये सच है? आजादी के बाद पहली बार एक साथ 19 नए जिलों की घोषणा को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मास्टर स्ट्रोक के रूप में देखा जा रहा है।

चुनावी साल में गहलोत ने सरकार के पक्ष में माहौल बनाने के लिए जिस तरह से बजट को तीन बार भुनाने की कोशिश की, ये उनकी लंबी प्लानिंग का हिस्सा है। अगर कोई साधारण सा प्रश्न पूछे कि बजट कितनी बार पेश होता है? जवाब होगा एक बार, लेकिन गहलोत ने बजट को तीन बार अवसर में बदला। पहला जब बजट पेश किया गया। दूसरा, बजट रिप्लाई और तीसरा, वित्त और विनियोग विधेयक (एप्रोपिएशन बिल) के जवाब में। तीनों बार बड़ी घोषणाएं करके गहलोत ने सबको चौंका दिया। आमतौर पर बजट के दिन ही सरकार बड़ी घोषणाएं करती हैं, लेकिन इस बार राजस्थान में तीनों बार बड़ी घोषणाएं की गईं।

रक्षाबंधन से 40 लाख महिलाओं को मिलेंगे स्मार्टफोन:नए जिले बनाने के साथ हर वर्ग को साधा, क्या गहलोत रोक पाएंगे एंटी-इंकमबेंसी ?

राजस्थान में पिछले चार चुनावों से सत्ता विरोधी लहर के कारण कोई भी सरकार रिपीट नहीं हुई। हर बार सत्ता बदल जाने की परंपरा को इस बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तोड़ने का दावा कर रहे हैं। वे हर वर्ग को साध रहे हैं।

यही कारण है कि इस बार के बजट में उन्होंने किसान, महिला, कर्मचारी, युवा और मध्यम वर्ग को खुश करने के लिए सरकार के खजाने को पूरी तरह से खोल दिया। ताकि आठ माह बाद चुनावी मैदान में उतरने जा रही कांग्रेस को कहीं एंटी-इंकमबेंसी की मार नहीं झेलनी पड़े।

भाजपा जिन मुद्दों को हवा दे रही, उनको हावी होने से पहले ही सभी वर्गों को साधने की उनकी कोशिश को इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

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