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(क्या “अघोषित कैद” में हैं महामहिम…???)

श्री सत्यपाल मलिक जी के करण थापर वाले इंटरव्यू कई कारणों से राष्ट्रव्यापी चर्चा में है। विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी ‘भ्रष्टाचार-प्रेम’ तथा पुलवामा के मुद्दे पर प्रधानमंत्री की घोर लापरवाही ( सीधे सीधे “संलिप्तता” कहने से वो भी बच रहे थे और फिलहाल मैं भी बच रहा हूँ) का गंभीर आरोप।

लेकिन, मेरे हिसाब से इस विस्फोटक इंटरव्यू में एक और बेहद गंभीर बात है जिसे नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। और ये बात, उपरोक्त दोनों आरोपों जितनी ही (शायद और ज़्यादा) गंभीर तथा लोकतंत्र के लिए घातक बात है।

पूर्व राज्यपाल मलिक साहब ने सीधे सीधे आरोप लगाया है कि ‘देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू (आदिवासी समाज से संबंधित) से मुलाकात करने वालों की सूची प्रधानमंत्री कार्यालय से “पास” (approve) होती है तब जाकर कोई देश की प्रथम नागरिक और “भारत गणराज्य की मुखिया” से मिल पाता है….!!’

अर्थात भारत की महामहिम राष्ट्रपति प्रधानमंत्री कार्यालय की “अघोषित कैद” में हैं।इस आरोप का भी प्रधानमंत्री या उनके प्रवक्ता द्वारा विरोध या जवाब नहीं दिया गया है।

इसका स्पष्ट मतलब ये है कि भारत की प्रथम आदिवासी राष्ट्रपति, जिनको अपने मनमर्ज़ी के हिसाब से अपने मेहमान आमंत्रित करने तक का भी अधिकार नहीं है, क्या वे किसी भी मुद्दे पर अपनी बात सरकार के सामने रख सकतीं हैं? क्या उनके लिए ये संभव है कि मोदी सरकार किसी भी गलत, जनविरोधी कानून को पास करा कर उनके पास भेज दे, उनके पास उसपर विचार करने या देश हित में सरकार के पास पुनर्विचार के लिए भेजने की स्वतंत्रता या सुविधा है?
उत्तर स्पष्ट है- “नहीं”

मुझे ये भी लगता है शायद पिछले राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी की स्थिति भी कमोबेश यही रही होगी।

यहां मैं याद दिलाना ज़रूरी समझता हूं कि पिछले वर्ष जब राष्ट्रपति चुनाव हो रहे थे तो मैंने “खुले तौर पर” विपक्ष के उम्मीदवार श्री यशवंत सिन्हा का समर्थन किया था। उस दौरान कुछेक ‘दलित बुद्धिजीवी’ मात्र आदिवासी समाज की होने आधार पर श्रीमती मुर्मू के समर्थन में जबरदस्त छाती ठोक रहे थे।

मुझे व्यक्तिगत तौर पर श्रीमती मुर्मू जी से कोई विरोध न तब था, और न अब है। लेकिन मुझे ये तब भी पूरा अहसास था, और अब श्री मलिक के इस बयान से ये एकदम साफ हो गया है कि ऊपरी चमक-दमक के पीछे श्रीमती मुर्मू जी की वास्तविक स्थिति क्या है।  क्या सिर्फ ‘प्रथम आदिवासी राष्ट्रपति’ होने के “प्रतीकात्मक/अलंकारिक” आधार पर श्रीमती मुर्मू का राष्ट्रपति बनाया जाना इस देश की 140 करोड़ आबादी के हित तथा लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए अच्छी बात है?

क्या अगर श्री यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति चुने जाते तो “राष्ट्रपति” जैसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन होने के बाद मोदी/सरकार की ये हैसियत या हिम्मत हो पाती, कि राष्ट्रपति के ऊपर ऐसा घटिया या घिनौना अंकुश लगाया जा सकता? क्या जिस बेलगाम तरीके से मोदी सरकार तमाम जनविरोधी व तानाशाहीपूर्ण कानून पास करवा कर राष्ट्रपति का “ठप्पा” (रबर स्टैंप) इस समय लगवा लेती है, क्या श्री सिन्हा के रहते ये संभव था?

उत्तर एकदम साफ व स्पष्ट है- “कभी नहीं”.

पूर्ववर्ती राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी (जो कि दलित समाज से संबंधित थे) का कितनी बार मोदी और उनके लोगों द्वारा सार्वजनिक मंचों पर अपमान किया गया था, ये भी इतिहास में अच्छी तरह दर्ज है।

अगर वाकई श्री मलिक के आरोपों में सच्चाई है (जो कि साफ नजर भी आती है) तो ये मामला केवल देश की राष्ट्रपति के अपमान का ही नहीं, बल्कि ये देश के पूरे आदिवासी समाज का भी घोर अपमान है।

श्री सत्यपाल मलिक के इंटरव्यू में हमारे देश के प्रथम नागरिक (महामहिम “राष्ट्रपति” जी ) की वास्तविक (दयनीय?) स्थिति का जो खुलासा किया गया है, वह इस इंटरव्यू के सबसे सनसनीखेज हिस्सा है।

राष्ट्रपति भवन के प्रवक्ता को इस गंभीर आरोप पर अपना स्पष्टीकरण देना चाहिए। अन्यथा, उनका “मौन” उनकी स्वीकृति का परिचायक माना जायेगा।

विपक्षी दल इस मुद्दे पर क्यों चुप हैं? क्या उन्हें इस अति- गंभीर मुद्दे पर सरकार से सवाल नहीं पूछने चाहिए…???

प्रमोद कुरील (पूर्व सांसद- राज्य सभा)
राष्ट्रीय अध्यक्ष: बहुजन नैशनल पार्टी (BNP)
18-04-2023

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