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राजस्थान में आपसी गुट बंदी समाप्त करने में भाजपा अग्रणी, कांग्रेस फिलहाल नहीं गंभीर! पायलट की नाराजगी पड़ सकती भारी!

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राजस्थान में आपसी गुट बंदी समाप्त करने में भाजपा अग्रणी, कांग्रेस फिलहाल नहीं गंभीर! पायलट की नाराजगी पड़ सकती भारी!
= रमेश शर्मा @ ब्लॉग =राजस्थान में अकेले कांग्रेस में ही नहीं बल्कि भाजपा में भी गुट बंदी बनी हुई है। इतना जरूर है कि कांग्रेस की गुट बंदी खुलकर सार्वजनिक रूप से सामने आ रही है वहीं भाजपा की गुटबंदी उनके समर्थकों के माध्यम से सामने आ रही है। पहले बात कर लेते हैं भाजपा की तो भारतीय जनता पार्टी में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर संकट बना हुआ है। हांलांकि अमित शाह , संगठन मंत्री चंद्रशेखर और पूर्व भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया सहित नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह ने भी मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर नरेंद्र मोदी को ही सामने लाकर खड़ा किया हुआ है। और अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 मई को अजमेर दौरे पर आ रहे हैं उससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को संदेश देने के लिए नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने अप्रत्यक्ष रूप से अभियान चलाया हुआ है। हो सकता है कि ऐसा अभियान पूरे राजस्थान में ही चला हुआ हो लेकिन ऐसा ही कुछ दृश्य अजमेर जिले में देखने को मिला। पहला मामला ब्यावर में देखने को मिला जहां एक दशक से भी अधिक समय से एक दूसरे के कट्टर राजनीतिक विरोधी अजमेर जिला अध्यक्ष देवीशंकर भूतड़ा और विधायक शंकर सिंह रावत एक मंच पर बैठे हुए दिखे हो। विधायक रावत वसुंधरा राजे के कट्टर समर्थक है वहीं देवीशंकर भूतड़ा संगठन के बड़े नेताओं के समर्थक रहे हैं।। दो दिन पहले ब्यावर में यह दोनों नेता एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करते नजर आए। जबकि भाजपा के सभी कार्यक्रम इन दोनों नेताओं ने अपने अपने स्तर पर अपने स्तर पर अलग अलग आयोजित किए। इसी प्रकार भाजपा के वरिष्ठ नेता औंकार सिंह लखावत को भी वसुंधरा राजे का ही नाजदिकी समर्थक माना जाता है। ओंकार सिंह लखावत दो दिन पहले ही नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ के साथ अजमेर जिले के दौरे पर रहे। जिसका सीधा सीधा मतलब है कि भले ही दौरा प्रधानमंत्री मोदी की अजमेर यात्रा को लेकर हो लेकिन इन दोनों मामलों से सियासी चर्चा है कि इन दोनों की मौजूदगी शायद वसुंधरा राजे को कुछ मैसेज देने से संबंधित रही हो। बात कर लें कांग्रेस की तो कांग्रेस ने सचिन पायलट और गहलोत में सामंजस्य बैठाने के लिए 26 मई को एक बैठक दिल्ली में बुलाई थी लेकिन बैठक के ठीक है एक दिन पहले गहलोत द्वारा सचिन पायलट का बिना नाम लिए उन पर दिवालियापन की बात कही। जिसका मतलब ये ही था कि गहलोत आलाकमान को संदेश देना चाहते थे जिसमें सचिन पायलट द्वारा की गई मांगों के बारे में बयान बाजी से जवाब दे दिया। और इसी को लेकर शायद आलाकमान ने बैठक स्थगित कर दी। भले ही कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को गहलोत की तुलना में कम शक्तिशाली मान कर नजर अंदाज कर रहा हो। लेकिन कांग्रेस को इस बात पर भी विचार करना होगा कि कांग्रेस चुनाव में सचिन पायलट को सम्मानजनक स्थान नहीं मिला तो वह कांग्रेस की कई सीटों को प्रभावित कर सकते हैं। कांग्रेस और बीजेपी भी इसी गुणा-गणित में लगी हुई है, पायलट 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद राजस्थान का अध्यक्ष बनाया गया था।
इसके बाद पायलट ने अध्यक्ष रहते वसुंधरा राजे के गढ़ पूर्वी राजस्थान में मजबूत पकड़ बना ली। पूर्वी राजस्थान के जिले दौसा, करौली, भरतपुर, टोंक, जयपुर, अलवर, सवाई माधोपुर और धौलपुर में विधानसभा की कुल 58 सीटें हैं।
2013 के चुनाव में बीजेपी ने यहां शानदार परफॉर्मेंस करते हुए 44 सीटें जीती थी, लेकिन पायलट ने 2018 में सेंध लगाते हुए बीजेपी को 11 पर समेट दिया. कांग्रेस को 2018 में पूर्वी राजस्थान में 44 सीटें मिली थी. पायलट समर्थक अधिकांश विधायक इसी क्षेत्र से आते हैं,
पायलट को सम्मान जनक पद नही दिया जाने पर इन 58 सीटों पर बीजेपी वर्सेज पायलट के बीच मुकाबला हो सकता है। इसके अलावा अजमेर, नागौर और बाड़मेर की करीब 20 सीटों पर भी पायलट का दबदबा है. इन इलाकों में भी पायलट कांग्रेस का खेल खराब कर सकते हैं और बीजेपी भी इसी गुणा-गणित में लगी हुई है। सियासी संकट को गंभीरता से नहीं लेने के चलते सरकार रिपीट करने के दावों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।

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