KAL KA SAMRAT NEWS INDIA

हर नजरिए की खबर, हर खबर पर नजर

Home » अजमेर का चीरहरण-कोई भी नेता कृष्ण बनकर बचाने के लिए आगे नहीं आया-सारे नेता बने धृतराष्ट्र और गांधारी

अजमेर का चीरहरण-कोई भी नेता कृष्ण बनकर बचाने के लिए आगे नहीं आया-सारे नेता बने धृतराष्ट्र और गांधारी

Spread the love

अजमेर का चीरहरण
-कोई भी नेता कृष्ण बनकर बचाने के लिए आगे नहीं आया
-सारे नेता बने धृतराष्ट्र और गांधारी
-सब-कुछ लुटाकर अब घड़ियाली आंसू बहाने से क्या फायदा
✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉स्मार्ट सिटी अजमेर का चीरहरण हो गया। कोई भी नेता कृष्ण बनकर बचाने के लिए आगे नहीं आया। जब करोड़ों-अरबों रूपए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में खर्च हो रहे थे, तब सारे नेता धृतराष्ट्र और गांधारी यानी, गूंगे, बहरे और अंधे बन गए थे। जब अफसरों ने अपनी मनमर्जी से करोड़ों-अरबों रूपयों को ’’बत्ती’’ लगा दी और अपने घरों की ’’तिजोरियां’’ भर लीं। तब शहर का एक भी ऐसा ’’माई का लाल’’ खुलकर बोलने और अफसरों की ’’खटिया खड़ी’’ करने के लिए सामने नहीं आया। अरबों रूपए से बना एलिवेटेड रोड बरसात में ऐसे चूने लगता है, जैसे कच्चा मकान। कच्चे मकान में तो फिर भी कम पानी टपकता होगा, किंतु एलिवेटेड रोड से थोड़ी-सी से बरसात में ऐसे पानी गिरने लगता है, जैसे झरना बह रहा हो। अजमेर के मक्कार, भ्रष्ट, रिश्वतखोर और कमीशनखोर अफसरों ने एलिवेटेड रोड नहीं, बल्कि कच्चे मकान से भी घटिया सामग्री से इसका निर्माण कराया हो। जब एलिवेटेड रोड बन रहा था, तब शहर के सारे भाजपा और कांग्रेस के नेता ’’मांद’’ में घुसे हुए थे। अब एलिवेटेड रोड के निर्माण में घटिया सामग्री का उपयोग होने का आरोप लगा रहे हैं। जब आनासागर की दुर्दशा हो रही थी, इसकी छाती चीर कर भू-माफिया कब्जे कर प्लॉट काट रहे थे, सारे नेताओं को ’’सांप सूंघ’’ गया था। आनासागर के कैचमेंट के काफी अंदर तक बसी कॉलोनियां जब बिपरजॉय तूफान के कारण हुई मूसलाधार बरसात से पानी में घिर गईं, तो अब छाती-माथा पीट रहे हैं। बरसात का दौर थमे तीन दिन बीत गए हैं, लेकिन अभी तक कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी मार्ग पर आनासागर सर्कुलर रोड के तिराहे से लेकर सिने मॉल तक सड़क के दोनों ओर ’’तलैया’’ बनी हुई है। कहने को यह गौरव पथ भी है, कितना गौरव बचा हुआ है, आसानी से दिखाई देता है। आनासागर से लगातार पानी निकालने के बाद भी सड़क पर बने दरिया का पानी कम होने का नाम नहीं ले रहा है। नेता चाहे भाजपा के हों या कांग्रेस के, सभी ने शहर की बदसूरती बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। सभी राजनीतिक स्वार्थ के कारण अपने मनसूबों को पूरा करने में लगे रहे। भू-माफियाओं को किसी भी जिम्मेदार अधिकारी और राजनेताओं ने रोकने की हिमाकत नहीं की। सब आंखों पर पट्टी बांधे, मुंह पर ताले लटकाए और कानों में रूई ठूंसे बैठे हुए थे। नतीजा, शहरवासियों के सामने है। आज आनासागर के सामने रहने वाले लोग इस पीड़ा को भोग रहे हैं। यही नहीं, भू-माफियाओं के अवैधानिक गतिविधियों पर जिला प्रशासन ने भी इसी आनासागर के कैचमेंट में सेवन वंडर्स के नाम से सात ताबूत खड़े कर दिए। करीब 15 करोड़ रूपए खर्च कर यह ताबूत बनाए गए। इनका शहर में कोई भी उपयोग आज तक सिद्ध नहीं हो पाया है। यही नहीं, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में अफसरों ने अपने चैंबरों को चमकाने में करोड़ों रूपए बर्बाद कर दिए। स्मार्ट सिटी का मूल मकसद शहर की सभी सड़कों को सुधारना, नाले-नालियों का निर्माण कराना और शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाना था, लेकिन चार चांद शहर में भले ही कहीं नहीं लगे हों, किंतु अफसरों के चैंबरों में जरूर लगे हुए दिखाई देते हैं। जगह-जगह सीवरेज के मेनहॉलों के ढक्कन उखड़ कर दुर्घटनाओं को न्योता दे रहे हैं। मेनहॉलों से उगल रहा गंदा पानी स्वच्छ भारत मिशन का सपना साकार कर रहा है। शहर के कई ऐसे मुख्य व प्रमुख मार्ग हैं, जहां सड़कों के दोनों पानी निकास के लिए नाले-नालियां बने हुए हैं। जाहिर है, जब भी बरसात होगी, तो पानी को निकलने का रास्ता नहीं मिलेगा और वह सड़कों पर दरिया बना रहेगा। कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी मार्ग के साथ-साथ पुष्कर रोड पर मित्तल अस्पताल के सामने भी यही स्थिति है। लेकिन कोई देखने और सुनने वाला नहीं है। आखिर पीडब्ल्यूडी, नगर निगम, अजमेर विकास प्राधिकरण और स्मार्ट सिटी के इंजीनियर क्या खाते हैं, जो सड़क बनवाने से पहले सड़कों के दोनों ओर नाले-नालियां बनवाने का डिजाइन तैयार क्यों नहीं करते। अब इंजीनियरों और अफसरों की अपनी तिजोरियां भरने की नीति का नमूना देखिए, अव्वल तो टूटी-फूटी सड़क जल्द से बनती नहीं है। जब बन जाती है, तो उसके 10-15 दिन के बाद ही पानी की पाइप लाइन, बिजली की लाइन, मोबाइल की कैबिल, गैस पाइप लाइन यानी किसी-ना-किसी काम से खोद दी जाती है। ऐसा ही पिछले दिनों आगरा गेट पर टेलीफोन एक्सचेंज और प्रवर डाक अधीक्षक कार्यालय के बाहर देखने को मिला। जैसे-तैसे तो एलिवेटेड रोड के नीचे सड़क सुधारी गई थी, लेकिन तीन दिन बाद ही कोई कैबिल लाइन डालने के लिए क्रॉस में सड़क खोदने के साथ-साथ फुटपाथ की सड़क भी खोद कर पटक दी गई। अब यह बात आज तक समझ में नहीं आई कि जब कोई पाइप लाइन या कैबिल लाइन डाली ही जानी है, तो संबंधित मार्ग की सड़क ठीक करने से पहले क्यों नहीं डाल दी जाती, ताकि सड़क बनने के बाद कुछ साल तक तो खोदने की नौबत ही नहीं आए। लेकिन क्या करें साहब, अफसरों और इंजीनियरों को हर माह सरकार से मिलने वाली मोटी तनख्वाह के अलावा उसके चार-पांच गुणा धन जुटाकर अपनी तिजोरियां भरनी होती हैं। इसलिए पहले सड़क बनवाते हैं और फिर कुछ दिन बाद ही खुदवा देते हैं। ऐसा नहीं करेंगे, तो फिर हराम की कमाई कहां से मिलेगी। यदि किसी मार्ग की सड़क नहीं खुदे, तो वह ऐसी घटिया बनवाते हैं कि एक बार की बरसात में ही सड़क के ’’कंकाल’’ नजर आने लगते हैं। मूसलाधार बरसात होने की स्थिति में मौका-मुआयना करने वाले भाजपा-कांग्रेस के नेताओं ने यदि समय रहते सुध ली होती, तो यह ’’नौटंकी’’ करने की जरूरत नहीं पड़ती और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में करोड़ों-अरबों रूपए खर्च होने के बाद भी शहर की इतनी दुर्गति नहीं होती। सीधा-सा मतलब, शहर का चीरहरण होने में अफसरों और इंजीनियरों के साथ-साथ भाजपा-कांग्रेस के नेता भी बराबर के भागीदार हैं और वे इससे बच नहीं सकते।

You may have missed

Skip to content