हिन्द-प्रशांत महासागर विवाद में अमेरिका और जी-7 की भी एंट्री
न्यूयार्क। प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बयानों के उपरांत भारत और कनाडा के बीच विवाद गहरा गया था, जिसे राजनीति की भाषा में कोल्ड वॉर कहा जाता है। भारत ने कनाडा के लोगों पर वीजा देने पर प्रतिबंध लगा दिया था तो गुरुवार (अमेरिकी समयानुसार) को ट्रूडो ने अमेरिका में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया और कहा कि वह भारत से कनाडा नागरिक की हत्या में मदद चाहता है। अपने पास साक्ष्य होने का दावा किया किंतु उसको भारत के साथ शेयर करने से इंकार कर दिया। ट्रूडो ने कहा, कनाडा के नागरिक की हत्या में उनके पास जो जानकारी या साक्ष्य हैं, वे भारत के साथ शेयर नहीं करेंगे। यह साक्ष्य आईज-5 ने जुटाये हैं। इसमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा शामिल है। वहीं व्हाइट हाउस ने भी एक बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि कनाडा में हत्या के मामले में वह भारत सरकार के उच्चस्तरीय सम्पर्क बनाये हुए है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन का भी बयान आया है और उन्होंने कहा, जो कनाडा ने बयान दिया है, वह गंभीर मामला है। दूसरी ओर जी-7 देशों का एक समूह भी अगले सप्ताह भारत की यात्रा कर सकता है। उल्लेखनीय है कि भारत ने कनाडा में कट्टरवादी सिंखों के व्यवहार को लेकर बार-बार कनाडा को सूचित करता रहा है। कनाडा के पीएम जस्ट्नि ट्रूडो अल्पमत की सरकार चला रहे हैं। उनके साथ जगमीत सिंह की पार्टी का गठबंधन है। जगमीत सिंह को भी कट्टरवादी विचाराधारा वाला नेता माना जाता है। खालिसस्तान चाहते हैं कनाडा के कट्टरवादी नेता पंजाब की राजनीति ने 1970 के दशक में एक व्यूह रचना की, जिसमें तत्कालीन वरिष्ठ नेता शामिल हुए थे। दिल्ली से लेकर चण्डीगढ़ तक सभी एकमत होकर ऐसी राजनीति लाये, जिससे दुनिया गोल हो गयी। एक से दूसरे स्थान पर भागदौड़ आरंभ हो गयी। पंजाब में आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें कहा गया कि विदेश, रक्षा को छोड़कर पंजाब को अपने स्तर पर निर्णय लेने का अधिकार हो। इसका पंजाब में व्यापक प्रचार किया गया। एक तरफ देश को आपातकाल झेलना पड़ रहा था तो दूसरी ओर कट्टरपंथी ताकतों ने प्रचार आरंभ कर दिया। इसके उपरांत आतंकवाद का दौर आरंभ हो गया। पंजाब के नरमपंथी विचारधारा वाले लोगों पर गरमपंथी भारी पड़ रहे थे। ऑपरेशन ‘ब्ल्यू स्टार’ अर्थात नीला सितारा। भारत के अकाली दल नेताओं ने नीली पगड़ी पहननी आरंभ कर दी। 90 के दशक से 2020 का दशक आ गया और 30 सालों के भीतर पंजाब में भारी बदलाव आया। अब राष्ट्रीय पंचायत अर्थात संसद के नीचले सदन लोकसभा के लिए समय आ रहा है। वहीं अमेरिका में भी अगले साल नवंबर के प्रथम मंगलवार को मतदान होना है। इस तरह से अपनी कुर्सियों को सभी लोग सुरक्षित करना चाहते हैं। जस्टिन ट्रूडो को भी 2025 में चुनावों का सामना करना है। यूरोप से लेकर अमेरिकाज तक मिशनरी भी चाहती है कि लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सुधार हो। कनाडा जाने के लिए हजारों की संख्या में लोग हर माह अप्लाई करते हैं। दूसरी ओर भारत ने कनाडा के लोगों पर प्रतिबंध लगा दिया है। ऐसे में भारतीय लोग जिनके बच्चे विदेश में हैं, वह चिंतित हैं। हालांकि यह कोल्ड वॉर है। कनाडा में हथियार रखने पर प्रतिबंध है। इस तरह से भारतीय लोगों को ज्यादा चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। मिशनरी के कार्यकर्ता भी सोशल मीडिया के माध्यम से यह प्रचार कर रहे हैं कि हम धर्म और अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थन करते हैं। सिख फॉर जस्ट्सि अमेरिका में चला था आंदोलन अमेरिका महाद्वीप के उत्तरी और साउथ के देशों में कट्टरवाद का दौर चला था और समय के साथ-साथ नयी पीढ़ी ने भी जन्म लिया। अयोध्या में राम मंदिर, नेपाल में पशुपतिनाथ, पुष्कर में ब्रह्मा जी के मंदिर के दर्शन करने के लिए हर साल हजारों लोग भारत आते हैं। इसी तरह से अमृतसर साहिब में स्वर्ण मंदिर में अरदास करते हैं। राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में सूरतगढ़ हाइवे के पश्चिम साइड में गैर भारतीयों का प्रवेश निषेध है। एनआरआई के लिए भी। उनको भी इस क्षेत्र में प्रवेश करना हो तो सूचना दर्ज करवानी होती है। 1970 के दशक में जिस अनजान व्यक्ति का प्रचार नहीं हो, इसके लिए आपातकाल लगाया गया था, उस अनजान को अब जीबीएल नाम दिया गया है। सिख, बिहारी सहित अनेक क्षेत्र के लोग अपना हक जताते हैं। इस तरह से भारतीय राजनीति में ही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी आंदोलन हो रहा है। राजस्थान में अब नहीं सहेगा राजस्थान अभियान चला तो विदेश में भी इसी सिद्धांत पर एक आंदोलन आरंभ किया गया है। वहीं अमेरिका में 2006 में सिख फॉर जस्ट्सि का अभियान आरंभ हुआ। यह अभियान नरमपंथी हाथों से कट्टरपंथी हाथों में चला गया। उधर कनाडा और अमेरिका, ब्रिटेन में रहने वाले सिख चाहते हैं कि अनजान को एक पहचान मिले। एक नाम मिले। इस तरह से वे आंदोलन कर रहे हैं। एक संदेश दे रहे हैं। सभी लोग अपनी-अपनी विचारधारा के साथ आंदोलनों में शामिल हो रहे हैं।
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