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विश्वविद्यालय में नवसवंत्सर पर हुआ संगोष्ठी का आयोजन*

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विश्वविद्यालय में नवसवंत्सर पर हुआ संगोष्ठी का आयोजन*

विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ( एबीआरएसएम) एवं विज्ञान भारती के संयुक्त तत्वावधान में नवसवंत्सर (विक्रम संवत 2081 चैत्र शुक्ल एकम ) पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई ।संगोष्ठी में अतिथिगणों में अध्यक्षता कुलपति प्रो. अनिल कुमार शुक्ला, मुख्य अतिथि एबीआरएसएम राजस्थान (उच्च शिक्षा) के प्रदेश महामन्त्री प्रो. सुशील कुमार बिस्सु, मुख्य वक्ता विज्ञान भारती के डॉ गोविंद नारायण पारीक, एबीआरएसएम के प्रदेश उपाध्यक्ष व् छात्रकल्याण अधिष्ठाता प्रो. सुभाष चंद्र व कार्यक्रम के संयोजक के रूप में प्रो. अरविन्द पारीक रहे ।कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के विभिन्न शिक्षक,छात्र छात्राए एवं कार्मिक सम्मिलित हुए।
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ राजस्थान (उच्च शिक्षा ) के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. सुभाष चंद्र ने विषय प्रवर्तन करते हुये बताया कि समाज में भारतीय नवसवंत्सर के वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं को समाज के सामने रखना ही इस संगोष्ठी के आयोजन का मुख्य उद्देश्य है । साथ ही उन्होंने बताया कि नव वर्ष के शुभ अवसर पर एमडीएस यूनिवर्सिटी के विभिन्न विभागों के छात्र-छात्राओं ने रंगोली प्रतियोगिता के दौरान यूनिवर्सिटी के मुख्य द्वार पर 12 भारतीय मास को दर्शाते हुए एक विशाल 20 फीट की आकर्षक रंगोली झाँकी सजाईं है, साथ ही कणाद भवन की रंगोली में अनेक राष्ट्रीय प्रतीको को दर्शाया गया है।
मुख्य अतिथि एबीआरएसएम के प्रदेश महामन्त्री प्रो. सुशील कुमार बिस्सु ने संगोष्ठी में सम्बोधित करते हुए कहा कि नव वर्ष बनाने के लिए एकत्रित होना चिंतन का विषय है ।उन्होंने इस विषय पर यह भी कहा कि सोते हुए को जगाना आसान है लेकिन जागते हुए को जगाना ज्यादा मुश्किल है । उन्होंने नवसवंत्सर के वैज्ञानिक पक्ष को समझाते हुए कहा कि यह समय प्रकृति में पतझड़ के बाद नवसृजन का मास है, अतः सही मायने में विक्रम संवत् पञ्चांग ही भारत के विकास में श्रेष्ठ है । उन्होंने ज़ोर दिया कि हम अपने सभी मांगलिक कार्य यथा जन्मोत्सव, विवाह मुहूर्त, गृहप्रवेश मुहूर्त आदि आयोजन इसी पञ्चांग के आधार पर करते है । साथ ही उन्होंने मतदान को लेकर भी सभी को जागरूक किया।
मुख्य वक्ता डॉ. गोविंद पारीक ने कालगणना के बारे में पीपीटी के माध्यम से विस्तृत से जानकारी दी । भारतीय काल गणना में तिथि, वार ,योग, नक्षत्र,करण मुख्य भूमिका निभाते हैं। हमारे ऋषियों ने विज्ञान का भरपूर उपयोग करके भारतीय मानस की रचना की।
कुलपति प्रो. अनिल कुमार शुक्ला ने कहा कि नव वर्ष को भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है , जैसे की वैशाखी, गुड़ी पड़वा, नवरात्रि आदि। भारत में नववर्ष का आगमन सूर्य की किरण के साथ शुरू होता है तथा उसी समय प्रकृति भी जन-जन को सब कुछ देना चाहती है। उन्होंने अपने ओजस्वी भाषण से सभी को नवसवंत्सर को धूमधाम से मनाने हेतु प्रेरित किया। प्रो. अरविन्द पारीक ने स्वागत भाषण दिया व् भारतीय पञ्चांग की विशेषताओं का उल्लेख किया । डॉ. लारा शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय से प्रो. ऋतु माथुर प्रो. भारती, जैन डॉ..आशीष पारीक, डॉ. अशीम जयंती , केंद्रीय विश्वविद्यालय अजमेर से प्रो. मनीष श्रीमाली, विज्ञान भर्ती से प्रो. अनिल गुप्ता एवं डॉ. कमलेश रावत उपस्थित रहे ।

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