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अजमेर उत्तर और अजमेर दक्षिण विधानसभा की समीक्षा वरिष्ठ पत्रकार की कलम से आकलन सबसे सटीक, मुगलतों की गल बहिया नहीं जमीन और आसमान का फर्क,,

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अजमेर उत्तर और अजमेर दक्षिण विधानसभा की समीक्षा

  • दोनों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा सुरक्षित स्तिथि में
    कॉंग्रेस के पत्ते खुलना बाकी

अजमेर। उम्मीद की जा रही है कि
अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में चुनाव आयोग की ओर से राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगा दी जाएगी।  इसी परिपेक्ष में राज्य की राजनीति के गलियारों में गहमा गहमी बढ़ गई है। जहां तक अजमेर की बात है तो अजमेर शहर की दो महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्रों में अजमेर उत्तर और अजमेर दक्षिण में 1957 से लेकर 2019 तक कांग्रेस और भाजपा के बीच ही प्रमुख मुकाबला होते आया है। जिस तरह से राज्य की राजनीति में किसी तीसरी पार्टी का कोई दबदबा नहीं है उसी तरह अजमेर में भी किसी तीसरी राजनीतिक पार्टी को पैर जमाने का अवसर नहीं मिला है। यदा कदा बहुजन समाज पार्टी ने बहुत प्रयास भी किए क्यूंकि अजमेर दक्षिण सीट एस सी के लिए आरक्षित भी है और इसका लाभ लेने के लिए लगभग दो दशक पूर्व बसपा के प्रमुख स्वर्गिय कांशीराम और मायावती ने अजमेर में जनसभाएं भी कीं लेकिन जनसमर्थन के अभाव में ना तो रैली सफल हुई और ना ही चुनाव में सफलता मिली।
सबसे पहले हम अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यह जनरल सीट है लेकिन यहां भी सिंधी समुदाय के वोटर अधिक होने के कारण सिंधी समुदाय से ही विधायक बनता आ रहा है। पिछले बीस सालों से चार विधानसभा चुनावों में लगातार अजमेर उत्तर से वासुदेव देवनानी विधायक बने हैं यानि कहा जा सकता है कि अजमेर उत्तर क्षेत्र की सीट अघोषित रुप से सिंधी सीट बन गई है। लगभग सवा दो लाख आबादी के अजमेर उत्तर क्षेत्र में लगभग 45 फीसदी आबादी सिंधी समुदाय की है। दूसरी ओर यह भी सच है कि अजमेर उत्तर से निर्वाचित विधायक पूरे राज्य का अकेला सिंधी विधायक होता है। जातिय समीकरण को ध्यान में रखते हुए भाजपा अजमेर उत्तर क्षेत्र से सिंधी उम्मीदवार को ही मैदान में उतारती आई है जबकि कांग्रेस ने डॉक्टर श्रीगोपाल बाहेती, गत़ 2019 के चुनाव में महेन्द्र सिंह रलावता को टिकट देकर परंपरा को तोडऩे की हिमाकत भी की जिसके नतीजे में उसे पराजय ही मिली।
अभी के हालात पर बात करें तो भाजपा से वर्तमान विधायक वासुदेव देवनानी के समकक्ष कोई चुनौती नहीं है। लगातार चुनावी विजयी से उनका हौसला बुलंद है। हालांकि पार्टी में और समाज के एक तबके में उनके प्रति रोष भी है लेकिन संघ का साथ होने से इस बार भी उनका चुनाव में उतरना तय है। जहां तक उनके कार्यकाल की बात करें तो अजमेर उत्तर में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ है सिवाए सडक़, पानी, बिजली, अतिक्रमण, अवैध नवनिर्माण जैसे मुददों पर राज्य सरकार या जिला प्रशासन को घेरने और विधानसभा में स्मार्टसिटी, आनासागर डूब क्षेत्र में अतिक्रमण को लेकर आवाज उठाने में देवनानी पीछे नहीं रहे। व्यापरियों की समस्याओं को लेकर व्यापार मंडल के साथ भी वह खड़े नजर आए हैं। पार्टी स्तर पर सक्रिय रहे हैं। अपने शिष्य रमेश सोनी को भाजपा शहर अध्यक्ष बनवाने में सफल रहे हैं। आने वाले विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर क्षेत्र से भाजपा से एक दमदार नाम सुरेन्द्र सिंह शेखावत उर्फ लाला बना का उभरा है। सुरेन्द्र शेखावत ने अजमेर उत्तर विधानसभा सीट को ध्यान में रखते हुए पिछले तीन सालों से तैयारी प्रारंभ कर दी थी और सभी समुदाय के कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिती दिखने लगी थी। अजमेर उत्तर क्षेत्र के मुस्लिम वोटर आम तौर पर कांग्रेस के वोटर ही माने जाते हैं लेकिन भाजपा में सुरेन्द्र शेखावत ही ऐसा चेहरा हैं जो मुस्लिम वोटर के बीच अच्छी छवि लिए है और चुनाव के समय स्वीकार्य हो सकते हैं लेकिन भाजपा के शीर्ष नेताओं के बीच अंदरुनी गुटबाजी अगर चुनाव तक नहीं मिटी तो सुरेन्द्र शेखावत को अवसर नहीं मिल सकेगा। शेखावत भाजपा में वसुंधरा राजे गुट के माने जाते हैं और इस समय वसुंधरा राजे और भाजपा आलाकमान और प्रदेश के नेताओं के बीच मतभेद बने हुए हैं जिनका खामियाजा ना सिर्फ सुरेन्द्र शेखावत को बल्कि दो गुटों में बंटे भाजपा कार्यकत्र्ताओं को उठाना पड़ सकता है। भाजपा से समाजसेवी के रुप में उभरे कंवल प्रकाश किशनानी ने भी अजमेर उत्तर से अपनी दावेदारी पेश कर देवनानी को चुनौती देने का प्रयास किया है हालांकि माना जा रहा है कि वो वासुदेव देवनानी से नाराज चल रहे सिंधी वोटर को प्रभावित कर सकते हैं। कंवल प्रकाश पिछले पांच सालों से अपने समुदाय के प्रभावी समाज सेवा के रुप में उभरे हैं सिधी समुदाय के तीज त्यौहार, पर्व, परंपराओं को प्रमुखता से उजागर करने में कंवल प्रकाश किशनानी ने जी जान लगा दी है, यही कारण है कि सिंधी समुदाय की अधिकतर परिवारों में कंवल प्रकाश की छवि मजबूत हुई है जिसका लाभ चुनाव के समय उन्हे मिल सकता है लेकिन फिर वही सवाल उठता है कि भाजपा किस आधार पर वासुदेव देवनानी का टिकट काटे। भाजपा जिन मुद़दों पर , राजनीतिक एजेंडे पर कार्य करती आई है देवनानी उसमें खरे उतरे हैं। इसी कारण से भाजपा का पितृ संगठन आरएसएस यानि संघ देवनानी से खुश है। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि भाजपा, अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र के लिए तय विधायक के साथ मजबूत स्थिती में खड़ी है भले ही भाजपा से कितने ही उम्मीदवारों ने टिकट के लिए आवेदन किया हो।
दूसरी ओर अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस अपना उम्मीदवार भी तय नहीं कर पाई है। टिकट के लिए पिछले चुनाव में प्रत्याशी रहे महेन्द्र सिंह रलावता ने पूरे पांच साल मेहनत की है और अपना प्रभाव बनाए रखा है। लेकिन आरटीडीसी के चैयरमेन धर्मेन्द्र राठौड़ की इस क्षेत्र में दिलचस्पी ने रलावता की मेहनत पर पानी फेर दिया है। राजनीतिक गलियारों में धर्मेन्द्र राठौड़ का टिकट तय माना जा रहा है लेकिन अभी कुछ कहा जा नहीं सकता क्यूंकि महेन्द्र सिंह रलावता भी कोई कमजोर उम्मीदवार नहीं हैं। यदि अजमेर उत्तर में टिकट वितरण सचिन पायलेट के कहने पर दिया जाता है तो महेन्द्र सिंह रलावता बाजी मार ले जाएगें, रलावता सचिन पायलेट के करीबी माने जाते हैं। कहने को तो कांग्रेस की ओर से अजमेर उत्तर से 18 उम्मीदवारों ने टिकट के लिए आवेदन दिए हैं लेकिन अधिकतर आवेदन कमजोर आधार वाले हैं। इस क्षेत्र से आम आदमी पार्टी भी अपना उम्मीदवार उतार सकती है लेकिन इससे भाजपा को ही फायदा मिलने की उम्मीद है क्यूंकि आप कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंध लगाएगी जैसा कि गुजरात विधानसभा चुनाव में हुआ। गुजरात चुनाव में जहां आप ने उम्मीदवार उतारे वहां कांग्रेस का वोट बंटा और भाजपा को सफलता मिली। भाजपा भी चाहेगी कि आप या बसपा या कांग्रेस के बागी उम्मीदवार अधिक से अधिक निर्दलिए बनकर चुनाव में मैदान में उतरें ताकि कांग्रेस के वोट बंटे और उन्हे राजनीतिक लाभ मिले। ऐसा नहीं है कि भाजपा में कोई बागी बनकर चुनाव में नहीं उतर सकता। सुरेन्द्र शेखावत, ज्ञान सारस्वत, कंवल प्रकाश भी पार्टी का टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं लेकिन भाजपा में मैनेजमेंट इतना मजबूत होता है कि ऐन मौके पर बागीयों को मना लिया जाता है।

अजमेर का दक्षिण विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यहां की लगभग सवा दो लाख की आबादी है। कोली, मेघवंशी, सांसी, हरिजन जाति बहुल्य इस क्षेत्र में कोली समाज का राजनीतिक वर्चस्व रहा है। इसका मुख्य कारण यहां का बीड़ी व्यसाय को माना जाता है जो घर घर में महिलाएं इससे जुड़ी हैं। कोली समाज के स्व शंकर सिंह भाटी बीड़ी व्यवास के प्रमुख उद्योगपति रहे हैं। कांग्रेस से उनके पुत्र ललित भाटी यहां से 1998 में विधायक और मंत्री रहे। दूसरे पुत्र हेमंत भाटी का नाम पूरे क्षेत्र में लोकप्रिय रहा है क्यूंकि हेमंत भाटी ने अपनी मेहनत और राजनीतिक कुशलता से अपनी पहचान गढ़ी है। इसी के चलते इस बार एक बार फिर कांग्रेस से टिकट मांग रहे हैं हालांकि वो पिछला चुनाव हार चुके हैं। कांग्रेस अजमेर दक्षिण क्षेत्र से 1957 से लेकर 2019 तक हुए 14 विधानसभा चुनाव में मात्र चार बार ही विजेता रही है जबकि भाजपा ने सात बार यहां का चुनाव जीता है। भाजपा के अस्तित्व में आने से पहले यहां से 1957 में निर्दलीय महेन्द्र सिंह, 1977 में जनता पार्टी से कल्याण सिंह और उससे पहले 1967 में जनसंघ पार्टी से अम्बालाल ने यहां जीत हासिल की थी। वर्तमान में भी भाजपा विधायक अनिता भदेल कोली समाज से आती हैं जो राज्य में सर्वश्रेष्ठ विधायक होने का गौरव भी हासिल कर चुकी हैं। अनिता भदेल भारतीय जनता पार्टी की ऐसी राजनेत्री साबित हुई हैं जिनकी मिसाल मिलना बहुत मुश्किल है। पहले वह अपने वार्ड से पार्षद बनीं, फिर अजमेर नगर परिषद की सभापति बनीं, फिर 2003 के चुनाव में विधायक बनीं, फिर 2008 में भाजपा सरकार में महिला एवं बाल कल्याण विभाग की मंत्री बनीं, फिर 2013 और 2018 में लगातार विजयी हासिल कर पिछला चुनाव जीत कर विधायक हैं और पिछले पांच सालों में अपने कार्यकाल के दौरान राज्य में कांग्रेस की गहलोत सरकार के खिलाफ विभिन्न मुद़दों पर लगातार विमुख रही हैं। अपने क्षेत्र में उन्होने सीसी सीमेंट की सडक़ें खूब बनवाई हैं। दक्षिण  क्षेत्र में विकास कार्यो में उनका नाम शिलान्यास और उद़घाटन शिलापट्टियों पर हर जगह देखा जा सकता है। यह बात अलग है कि बेहद सरल और सर्वउपलब्ध होने के बावजूद ऐसा कोई कार्य उनके खाते में दर्ज नहीं हुआ है जो अजमेर के विकास में मील का पत्थर साबित हो। इस क्षेत्र से भाजपा के लिए अनिता भदेल लगातार विजयी होकर वासुदेव देवनानी के समान पार्टी में जगह बनाई हुई हैं इसलिए लगता नहीं कि भाजपा किसी ओर को टिकट देने का विचार करे। फिर भी अजमेर नगर निगम की मेयर ब्रजलता हाड़ा, प्रियशील हाड़ा, डॉ नेहा भाटी सहित एक दर्जन दावेदार पार्टी से टिकट की उम्मीद लगाए बैठे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस से हेमंत भाटी, कमल बाकोलिया के बीच जमकर प्रतिस्पर्धा है। दोनों कांग्रेसी नेता सचिन पायलेट के करीबी होने का भरोसा पाले टिकट की उम्मीद में आस लगाए हैं तो वहीं बिल्लियों की लड़ाई में बंदर का फायदा वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए मुख्यमंत्री गहलोत के समर्थक बन राजकुमार जयपाल ने अपनी दावेदारी पेश कर ढाई चाल चल दी है। पिछले एक साल से मुख्यमंत्री के करीबी होने के प्रचार से लबरेज आरटीडीसी चैयरमेन धर्मेन्द्र राठौड़ के साथ राजकुमार जयपाल कंधे से कंधा मिलाकर चले हैं। राठौड़ के साथ नैया पार लगने की आस में राजकुमार जयपाल को विश्वास है कि कांग्रेस से उन्हे टिकट मिल जाएगा।
कुल मिलाकर देखा जाए तो अजमेर उत्तर और दक्षिण क्षेत्र में भाजपा तो सुरक्षित स्थिति में दिखाई दे रही है लेकिन कांग्रेस को दोनो ही सीटों पर पसीना बहाना पड़ेगा और उससे भी पहले उम्मीदवारों की आपसी प्रतिस्पर्धा से भी जूझना होगा।    
     कुल मिलाकर अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक समीक्षा भाजपा के पक्ष में दिखती है लेकिन जनता का फैसला ही अंतिम होता है, जनता कब कहां किसको नकार दे कहा नहीं जा सकता और ना ही सही सही अंदाजा लगाया जा सकता है। इस क्षेत्र को जीतने के लिए कांग्रेस को मजबूत उम्मीदवार, मजबूत बूथ मैनेजमेंट, मजबूत कार्यकत्र्ता की रणनीति बनानी होगी।

  • मुजफ्फर अली

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