चुनावी फायदे के लिए महिलाओं की भावनाओं से खिलवाड़, पूर्व में जारी आरक्षण की एक बार समीक्षा होनी ही चाहिए आखिर कितनी सफल हो पाई है महिलाएं,,,
अजमेर ,19 सितंबर,2023 केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने आनन फानन में 5 दिन का जो संसद का विशेष सत्र बुलाया है उसके अंतर्गत महिला आरक्षण के संबंध में एक विशेष बिल संसद के पटल पर पारित करने का जो प्रयास किया जा रहा है उससे पहले केंद्र सरकार कोअन्य निचले स्तर पर दिए जा रहे महिलाओं के लिए आरक्षण के संदर्भ में एक बार सर्व अथवा समीक्षा करवानी चाहिए थी। ग्राम पंचायत स्तर पर वार्ड पंच सरपंच पंचायत समिति प्रधान आदि मेंएवं अन्य क्षेत्रों में दिए जा रहे आरक्षण के लिए वास्तव में महिलाओं की हालातो में कितना सुधार हो पाया है वास्तविक अर्थों में क्या महिलाओं को दिए गया यह आरक्षण उनकी भलाई के लिए सही साबित हुआ अथवा महिलाओं के हालातो में कोई आमूल चूल सुधार भी हुए हैं। उनकी सामाजिक राजनीतिक हैसियत बड़ी हो ऐसा भी नहीं है आज भी ग्रामीण स्तर पर वार्ड पंचायत व सरपंच अथवा प्रधान नाम मात्र के लिए ही महिलाएं कार्य कर पाती है वह केवल मोहर लगाने के काम ही आती है,राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो एक बार सार्वजनिक मंच से कहा भी था कि हमने कोई नई पोस्ट निकली है क्या,,,सरपंच पति वार्ड पंच पति। अनुसूचित जाति जनजाति की महिलाओं को तो यह अधिकार भी हासिल नहीं होता जिन इलाकों में गांव में वार्ड पंच सरपंच अनुसूचित जाति जनजाति की महिलाएं होती है वहां पर तो प्रत्येक ग्रामवासी ही सरपंच बन जाता है। ऐसे में क्या लोकसभा में और राज्यों की विधानसभा में महिलाओं को 33% आरक्षण देने से आखिर क्या क्रांति होगी क्या बदलाव आएंगे वास्तव में इसकी समीक्षा को नियंत्रण आवश्यक है या कहीं वार्ड पंच और सरपंच की ही भांति विधायक और सांसद भी महिलाएं केवल नाम मात्र के लिए ही बन पाए।
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